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________________ २२ जैनमेघदूतम् करने पर मधुर वाणी में यह कह कर उन लोगों से कुछ दिनों तक प्रतीक्षा करवायी कि 'यदि मैं लोकप्रीतिकारिणी, शाम - मार्दव, सन्तोष आदि गुणों की खान के समान किसी कन्या को प्राप्त करूँगा तो उसी से विवाह करूंगा।' [भगवान् श्रीनेमिनाथ के इस कथन का अभिप्राय यह था कि लोक - प्रीतिकारी गुणों से युक्त एकमात्र दीक्षा ही है । मैं समय आने पर उसीको ग्रहण करूँगा, परन्तु माता-पिता उनके इस अभिप्राय को नहीं समझ सके और कुछ दिन तक प्रतीक्षा किये |] ||३१|| स्वैरं भ्राम्यन् वनगज इव श्रीपतेरन्यदासौ शस्त्रागारं न्यविशत लसच्चारुचक्रं सरोवत् । तत्रापश्यत्कुटिलसरलां सर्वतः पुष्कराढ्यां शस्त्रश्रेणीं विकचकमलां वीचिमालामिवाथ ||३२|| स्वरं भ्राम्यन् • हे जलद ! असौ भगवान्नेमिः अन्यदा कस्मिश्चित्प्रस्तावे स्वैरं स्वेच्छया वनगजइव भ्राम्यन् सन् । श्रीपतेः कृष्णस्य शस्त्रागारं आयुधशालां सरोवत् सरइव न्यविशत् प्रविष्टः । किंरूपं शस्त्रागारं - लसच्चारचक्रं लसत् स्फुरत् चारु मनोज्ञ चक्रं चक्रनाम्नारत्नं यत्र तत् । किंरूपं सरः - लसच्चारुचक्रं लसन्तः स्फुरन्तः चरो वा मनोहराः चक्राः चक्रवाकाः, उपलक्षणत्वात् अन्येऽपि पक्षिणः यत्र तत् । हे जलद शस्त्रागारप्रवेशानन्तरं असौ श्रोनेमिः तत्र शस्त्रागारे वीचि - मालामिव कल्लोलपरम्परामिव शस्त्रश्रेणों अपश्यत् ददर्श । कि लक्षणां शस्त्रश्रेणींकुटिलसरलां कुटिला च सरला च कुटिलसरला तां तथा सर्वतः समन्तात् पुष्कराढयां पुष्करैः योगरैः आढ्यां पुष्कराढ्यां वां तथा विकचकमलां विकचा विकस्वरा कमला लक्ष्मीर्यस्याः सकाशात् सा ताम् । किंरूपां वीचिमालां-कुटिलसरलां अत्र सदृशमेव तथा पुष्करैः पानीयैः आढ्या पुष्कराढ्या तां तथा विकचानि विकस्वराणि कमलानि पद्मानि यस्यां सा ताम् ||३२|| किसी समय वे भगवान् श्री नेमि वनगज सदृश स्वेच्छापूर्वक विचरण करते हुए चक्रवालों से सुशोभित सरोवर की तरह चक्र, आयुध (आदि) से सुसज्जित श्रीकृष्ण के शस्त्रागार में प्रविष्ट हुए। वहाँ चारों ओर जल ― पूर्ण और विकसित कमलों वाली कुटिल, सरल तरंग माला की भाँति - कुटिल - सरल आयुधों तथा तीक्ष्ण धार वाले बाणों से युक्त उत्कृष्ट शोभा वाली शस्त्रश्रेणी को देखा ॥ ३२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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