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________________ १८ जैनमेघदूतम् ( शेषनाग, सूर्य, और इन्द्र ) ने क्रमशः सहस्रमुख, सहस्रकर और सहस्रनेत्र धारण किये | इस श्लोक में श्रीनेमिनाथ के गुणों की अतिमहनीयता के बारे में कवि ने उत्प्रेक्षा को है कि शेषनाग ने नेमिनाथ प्रभु के गुणगान के लिये ही हजारों मुख धारण किये, गिनने के लिये ही सूर्य ने हजारों हाथ धारण किये एवं इन्द्र ने देखने के लिये हो हजारों आँखें धारण कीं ।। २५ ।। व्योमव्याजादहनि कमनः पट्टिकां सम्प्रमृज्य स्फू‍ फर्जल्लक्ष्मालकश शिखटोपात्रमादाय रात्रौ । रुग्लेखन्या गणयति गुणान् यस्य नक्षत्रलक्षादङ्कांस्तन्वन्न खलु भवतेऽद्यापि तेषामियत्ताम् ॥ २६ ॥ व्योमव्याजा • हे मेघ ! कमनो ब्रह्मा रुग्लेखन्या कान्तिरूपलेखिन्या यस्य भगवतो गुणान् गणयति संख्यापरिमितान् करोति । किंकुर्वन् – नक्षत्रलक्षात् नक्षत्रछलात् रात्री अङ्कान् एकद्वित्र्यादिरूपान् तन्वन् विस्तारयन् । किंकृत्वा -- व्योमव्याजात् अहनि दिवसे पट्टिकां सम्प्रमृज्य मार्जयित्वा । पुनः किंकृत्वा - स्फूर्जल्लक्षमालकः शशिखटीपात्रमादाय स्फूर्जंत् चञ्चत् यल्लक्ष्मं लाञ्छनं तदेव अलकाः केशा यस्मिन् एवंविधं शशिखटीकापात्रंखटी भाजनं तत् आदाय गृहीत्वा । हे जलघर ! खलु निश्चितं तेषां गुणानां इयत्तां सख्या अद्यापि अयावदपि नभवते नलभते । भूङप्राप्ती इति धातोः प्रयोगः ॥ २६ ॥ इस श्लोक में कवि ने दिन-रात की उत्प्रेक्षा प्रभु नेमिनाथ के गुणगणन में की है। दिन में आकाश स्वच्छ रहता है और रात्रि में तारों से पूर्ण रहता है । प्रकृति के इस स्वाभाविक नियम को कवि ने मनोरम ढंग से उत्प्रेक्षित किया है ब्रह्मा प्रतिदिन प्रभुनेमिनाथ के गुणगणन में ही व्यस्त रहते हैं । दिन में आकाशरूपी पट्टिका को मार्जित कर रात्रि में प्रकाशित चन्द्रमा की कलङ्करूपी स्याही और चन्द्रमारूपी दावात तथा उसकी किरणरूपी लेखनी से तारों रूपो अंकों के लिखने के ब्याज से प्रभु के गुणों को गिनते हैं, लेकिन आज भी उन गुणों की इयत्ता नहीं प्राप्त कर सके । [ अभिप्राय यह है कि इस प्रकार लिखते-लिखते जब पट्टिका भर गयी और गुणों की गणना समाप्त नहीं हुई तो पुनः प्रातःकाल उसे मार्जित कर अर्थात् अंकों को मिटाकर, क्योंकि सूर्योदय होने पर तारे नहीं दिखाई पड़ते, पुनः रात्रि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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