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________________ जैनमेघदूतम् जिन भगवान् के पवित्र जन्म-ग्रहण पर सभी ग्रह अति उच्च स्थानों पर चले गये थे, जैसे मानो वे उन भगवान् को देखने की अभिलाषा से उच्च स्थानों पर चले गये हों । दिशाएँ धूल और बादलों के न रहने से प्रसन्न हुई तथा स्वजनों का चित्त एवं इन्द्रियाँ प्रसन्न हुई । देवताओं ने रत्नों एवं स्वर्ण की तब तक वर्षा की जब तक खजाना पूर्ण न हुआ । इस प्रकार संसारके समस्त लोगोंने हर्षं धारण किया ||१९|| १४ ये ये भावाः प्रियसुतकृते प्रतिक्रियन्त प्रसूभिस्तांस्तांस्तस्यातनिषत हरिप्रेरिता देव्य एव । नानारूपाः सदृशवयसो हंसवद्वीचयस्तसं देवा एवानिशमरमयन् केलिवापीषु भक्त्या ॥२०॥ ये ये भावाः ० हे मेघ । प्रसूभिः मातृभिः प्रियसुतकृते वल्लभपुत्रकृते ये ये भावाः अंङ्गप्रक्षालननेत्राञ्जनलवणोत्तरेणादयः प्रक्रियन्ते अतिशयेन क्रियन्ते । हे मेघ ! हरिप्रेरिताः इन्द्रप्रेरिता देव्य एव तस्य भगवतः श्रीनेमेस्तान्तान् भावान् अनिषत कृतवत्यः । हे मेघ देवा एव केलिवापीषु क्रीडावापिकाषु भक्त्या गौरवेण तं भगवन्तं अनिशं निरन्तरं अरमयन् रमयन्तिस्म । किंरूपाः देवाः — हरिप्रेरिताः तथा नानारूपाः नानाप्रकारं रूपं येषां ते तथा सदृशवयसः सदृशं समानं वयो येषां ते । किंवत् — हंसवत् यथा वीचयः कल्लोला: हंसं रमयन्ति । कीदृशा वीचयःनानारूपाः नानाप्रकारं लघुगुरुतररूपं यासां ताः तथानानारूपाः तथासदृशवयसः सदृशाः पतनोत्पतनादिनासमानाः वयसः पक्षिणो यासु ताः सदृशवयसः तथा हरिप्रेरिताः हरिणा वायुना प्रेरिता हरिप्रेरिताः ॥२०॥ अपने प्रियपुत्र के लिए माताएँ जिन जिन क्रियाओं को करती हैं उन सभी क्रियाओं को इन्द्रप्रेरित ( इन्द्र की आज्ञा से) अप्सराओं ने पूर्ण किया तथा अनेक रूपधारी, समान उम्र वाले इन्द्रप्रेरित देवताओं ने क्रीडा-वापी में निरन्तर भक्तिपूर्वक उन भगवान् नेमिनाथ को उसी प्रकार रमाया आनन्दित किया) जैसे वायु से प्रेरित ( हवा के झोकों से उठी) लहरें तालाबों में हंसों को रमाती (आनन्दित करती ) हैं ||२०|| अस्नातोऽपि स्फटिकविमलोऽभूषितः कान्तरूपः स्तन्यापायी प्रचितकरणोऽशास्त्रदृश्वा मनीषी । किं किं ब्रूमः शुचिरुचिरसौ शैशवेऽपि प्रकार - णापत्पोषं त्वमिव मरुता सर्वलोकोत्तरेण ॥ २१ ॥ Jain Education International ―― For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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