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________________ १२ : जैनमेघदूतम् ततोऽन्तरिक्षगो वाचं व्याजहार नलं तवा। हन्तव्योऽस्मि न ते राजन् करिष्यामि तव प्रियम् ॥ दमयन्ती संकाशे त्वां कथयिष्यामि नैषध । यथा त्वदन्यं पुरुष न सा मंस्यति कहिचित् ॥ एवमुक्तस्ततो हंसमुत्ससर्ज महीपतिः। ते तु हंसाः समुत्पत्य विदर्भानगमंस्ततः ॥ और इस प्रकार विदर्भ नगर पहुँचकर उस हंस ने दमयन्ती से नल की सुरूपता, बलशालिता व महानता का बखान किया । दमयन्ती ने भी उस हंस से नल के पास अपनी प्रणय-याचना निवेदित की। जिसे हंस ने नल के पास आकर बतलाया। इसके अतिरिक्त देवताओं के दूत के रूप में नल का भी दमयन्तो के पास जाना सर्वविदित है। श्रीमद्भागवत-श्रीमद्भागवत में भी ऐसे कई स्थल पाये जाते हैं, जो कि निश्चित रूप से कई सन्देश-काव्यों के आधार स्वरूप हैं। भागवत के एक प्रसङ्ग में गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम को प्राप्त कर कुछ अभिमान सा करने लगीं। उनके इस अभिमान को देख श्रीकृष्ण ने उनके उस अभिमान को दूर करने की ठानी। इसलिए रास-लीला के ही बीच से वे एकाएक अन्तर्धान हो जाते हैं । अकस्मात् अपने बीच श्रीकृष्ण को न पाकर गोपिकाएँ बहुत दु.खित होती हैं । इस प्रकार श्रीकृष्ण के विरह में किसी उन्मत्त की तरह आम्र, मल्लिका, यूथिका, तुलसी, प्लक्ष, न्यग्रोध, अश्वत्थ आदि वृक्षों से उनके बारे पूछती हैं अन्तहिते भगवति सहसैव वजांगनाः । अतप्यंस्तमचक्षाणाः करिण्य इव यूथपम् ॥ गत्यानु रागस्मितविभ्रमेक्षितैमनोरमालापविहार विभ्रमैः । आक्षिप्त चित्ताः प्रमदाः रमापतेस्तास्ता विचेष्टा जगहस्तदात्मिकाः॥ गतिस्मितप्रेक्षणभाषणादिषु प्रियाः प्रियस्य प्रतिरूढमूर्तयः । असावहं त्वित्यबलास्तदात्मिका न्यवेदिषुः कृष्णविहार विभ्रमाः ।। गायन्त्य उच्चरमुमेव संहता विचिक्युरुन्मत्तकवद् वनाद् वनम् । पप्रच्छराकाशवदन्तरंबहिर्भूतेषु सन्तं परुषं वनस्पतीन् । दृष्टो वः कच्चिदश्वत्थ प्लक्षः न्यग्रोध नो मनः । नन्द सूनुर्गतो हत्वा प्रेम हासावलोकनैः ॥ कच्चित् करबकाशोक नाग पुन्नागे चम्पकाः । रामानुजो मानिनीनामितो दर्पहरस्मितः ॥ १. महाभारत, वनपर्व (नलोपाख्यान), ५३।२०-२३ । २. वही, ५४। ३. श्रीमद्भागवत, १०।३०११-६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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