________________
भूमिका : २२१ के समान करुण और मर्मस्पर्शी स्वर में मन्दाक्रान्ता छन्द में रुक-रुक कर कान्ता के पास भेजने का सन्देश मेघ को बता रहा है। हृदय के भावों के साथ छन्द का अपूर्व साहचर्य हो गया है और काव्य की ध्वनि, रीति एवं छन्द यक्ष के करुणकण्ठ में मिश्रित हो गये हैं, जिससे एक अपूर्व काव्यसृष्टि सम्पन्न हो गयी है। ____ आचार्य मेरुतुङ्ग के जैनमेघदूतम् की नायिका राजीमती अत्यन्त शोक से पीड़ित है । शोक, विषाद एवं दुःख के कारण वह अतिदीन हो गयी है, उसकी क्रियाशक्ति भी अति मन्द सी है-मूर्छावस्था के कारण । इसी से वह मन्द स्वर में धीरे-धीरे रुक-रुक कर अपने सन्देश को मन्दाक्रान्ता छन्द में ही निबद्ध कर मेघ से निवेदित करती है। हृदय से उद्भत उसके वे भाव मन्दाक्रान्ता वृत्त को मन्थरवत् मन्द गति से निकल-निकल कर अपूर्व मनोहारिता प्रसारित करते हैं । फिर भी आचार्य मेरुतुङ्ग की मन्दाक्रान्ता की मनोहारिता उस स्तर को प्राप्त नहीं कर पायी है जिस स्तर पर कालिदास की मन्दाक्रान्ता की मनोहारिता मिलती है। कारण, आचार्य मेरुतुङ्ग के जैनमेघदूतम् में क्लिष्टतम शब्दों से सम्बन्धित दुरूह भाषा जो सन्निहित है। तथापि जैनमेघदूतम् के मन्दाक्रान्ता छन्द में निबद्ध श्लोकों में पर्याप्त श्रुतिमधुरता, मन्थरता और गम्भीरता दृष्टिगोचर होती है तथा इसमें कोई सन्देह नहीं कि जैनमेघदूतम् की मन्दाक्रान्ता भी उतनी ही सशक्त एवं जीवन्त है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org