________________
२२० : जनमेघदूतम्
इसी प्रकार जैनमेघदूतम् काव्य के समस्त श्लोक मन्दाक्रान्ता के सुस्पष्ट साँचे में ढले हुए मिलते हैं, जो अनायास ही किसी भी सहृदय रसिक को अपना रसास्वादन कराने में पूर्ण सक्षम हैं। छन्द-समीक्षण (कालिदासीय मेघदूत के परिप्रेक्ष्य में): ____महाकवि कालिदास एवं आचार्य मेरुतुङ्ग दोनों कवियों ने अपनेअपने दूतकाव्यों को मन्दाक्रान्ता छन्द में ही निबद्ध किया है । इससे स्पष्ट होता कि मन्दाक्रान्ता छन्द अवश्य ही कुछ विशेषतायुक्त होगा और है भी ऐसा ही, क्योंकि मन्दाक्रान्ता का प्रयोग विशेषकर प्रवास, विपत्ति तथा वर्षा के वर्णन में किया जाता है और प्रस्तुत दोनों दूतकाव्यों का प्रारम्भ भी प्रायः कुछ ऐसे ही वातावरण में होता है। अतः दोनों हो दूतकाव्यों को मन्दाक्रान्ता छन्द में रचना उपयुक्त ही सिद्ध होती है। ____ वर्षा में मेघ के आगमन से साधारण प्रवासी का पथ भी आर्द्र हो जाता है और उसकी गति मन्थर हो जाती है। इसी आधार पर दोनों ही कवियों ने अपनी प्रसन्नमधुरा वाणी को मन्दाक्रान्ता की झूमती चाल प्रदान कर वह अलौकिक रसधारा प्रवाहित की है, जिसमें अद्यावधि काव्यरसिक डूबते-उतराते चले आ रहे हैं। दोनों ही कवियों की मन्दाक्रान्ताप्रस्तुति सराहनीय है । कालिदास का मन्दाक्रान्ता छन्द पर इतना अधिकार देखकर ही क्षेमेन्द्र ने कहा है
सुवशा कालिदासस्य मन्दाक्रान्ता प्रवल्गति ।' कालिदास के छन्द-प्रयोग पर विशेष रूप से विचार करने पर प्रतीत होता है कि जैसे उसने अपने काव्य के द्वारा रसों में छन्दोयोजना की गम्भीर शिक्षा दी है और कुछ विशेष छन्दों को कुछ विशेष भावों एवं रसों के उपयुक्त समझा है । इस विश्लेषण में मन्दाक्रान्ता का प्रयोग प्रवास, विपत्ति एवं वर्षा के वर्णन में उपयुक्त प्रतीत होता है। इसी आधार पर कालिदास ने विरह, प्रवास, वर्षा, करुणा, शोक आदि भावों से युक्त मेघदूत काव्य के लिए मन्दाक्रान्ता वृत्त का चयन किया है । कालान्तर में प्रायः समस्त दूतकाव्यों में इस वृत्त का अनुकरण किया जाने लगा। प्रकृत प्रबन्ध का नायक यक्ष विरह से अति कातर है, शोक और दुःख के कारण उसकी समस्त क्रियाशक्ति अति मन्द पड़ गयी है। इसी कारण वह विहाग
१. सुवृत्ततिलक, ३/३४।
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org