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भूमिका : २१९ छन्द को ही लेकर अपने काव्यों की रचना की है। उन्हीं कवियों में जैनमेघदूतम् काव्य के रचनाकार आचार्य मेरुतुङ्ग भी हैं। इन्होंने भी कालिदास के मेघदूत को आधार मानकर अपनी एक स्वतन्त्र जैन कथा को मन्दाक्रान्ता छन्द में सुव्यवस्थित रूप से निबद्ध किया है। कवि ने अपनी प्रतिभा द्वारा मन्दाक्रान्ता को कालिदासीय मेघदूत की मन्दाक्रान्ता की भाँति हो अत्यन्त उत्कृष्टतम बनाने का प्रशंसनीय प्रयत्न किया है । इसके साथ ही काव्यकार मेरुतुङ्ग ने मन्दाक्रान्ता छन्द की मधुरता और गम्भीरता का भी पूरा-पूरा ध्यान रखा है। श्लोकों के भावों को कवि ने उतनी ही गति दी है, जितनी गति मन्दाक्रान्ता छन्द के प्रवहण के लिए आवश्यक है। इसके अतिरिक्त मन्दाक्रान्ता छन्द के मुख्य लक्षणों के आधार पर भी काव्य का प्रत्येक श्लोक विशुद्ध सिद्ध होता है । इसी बात के निदर्शनार्थ जनमेघदूतम् का प्रारम्भिक श्लोक प्रस्तुत किया जा रहा है
मगण भगण नगण तमण तमण मुरु Sss
।।। । । 55 कश्चिरका-स्तामवि-षपसु-खानीगर-हत्यन्त-धीमा 555 sm lits si ssi ss नेनो-तित्रिभु -बनगु-स्वैर-मुज्झाञ्च-कार। 555 ।। ।। । । 55 वानंदर - वासुर-तरुरि-बात्युच्च-धामारु-रुक्षुः 555 ।। ।।। । । ss पुण्यं - थ्वीधर - धरम-थोरैव-तस्वीच-कार ॥' इस श्लोक में प्रत्येक चरण १७ अक्षरों का है, जिसमें पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, दसवाँ, ग्यारहवाँ, तेरहवाँ, चौदहवाँ, सोलहवाँ एवं सत्रहवाँ वर्ण गुरु है, शेष वर्ण लघु हैं । यथाsss ।। ।।। ऽ ऽ ।. s 55 क श्चि त्का-न्ता म वि-षय सु-खा नी च्छु-र त्य न्त-धो मान् १२ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७
इसके साथ ही क्रमशः चार, छः एवं सातवें वर्ण पर विराम भी परिलक्षित होता है
कश्चित्कान्ताम्, अविषयसुखान्, इच्छुरत्यन्तधीमान्,
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१. जैनमेघदूतम्, १/१ ।
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