________________
भूमिका : २१७ मन्दाक्रान्ता जलधिषडगैम्भौ नतौ ताद गुरू चेत् ।' हेमचन्द्राचार्य ने अपने ग्रन्थ में मन्दाक्रान्ता छन्द का लक्षण इस प्रकार दिया है
मो नौ तौ गौ मन्दाक्रान्ता घचैः। सुवृत्ततिलक में कवि क्षेमेन्द्र ने मन्दाक्रान्ता छन्द का लक्षण देते हुए लिखा है कि सप्तदश अक्षरों वाले इस वत्त में चार, छः एवं सात अक्षरों पर विरति होती है
चतुःषट्सप्तविरतिवृत्तं सप्तदशाक्षरम् ।
मन्दाक्रान्ता मभनतैस्तगगैश्चाभिधीयते ॥३ गंगादास ने अपनी छन्दोमञ्जरी में मन्दाक्रान्ता का लक्षण इस प्रकार दिया है
मन्दाक्रान्ताम्बुद्धिरसनगैमो भनौ तौ गयुग्मम् ।। वृत्तवार्तिककार रामपाणिवाद ने मन्दाक्रान्ता छन्द को इस प्रकार निरूपित किया है
उपायैश्च नयैरश्वैविरामो यत्र विद्यते।
मन्दाक्रान्ता तु सा ज्ञेया मभौ नततगा गुरुः॥ भट्टचन्द्रशेखर ने वृत्तमौक्तिक में मन्दाक्रान्ता छन्द का लक्षण इस प्रकार विश्लेषित किया है
कणौ पुष्पद्वितयसहितौ गन्धवद्धस्तयुक्ता हारं रूपं तदनु वलयं स्वर्णसञ्जातशोभम् । संबिभ्राणा विरूतललितौ नूपुरौ वा पदान्ते
मन्दाक्रान्ता जयति निगमैश्छेदयुक्ता रसैश्च ॥ इसी प्रकार महाकवि कालिदास ने अपने छन्दोविषयक ग्रन्थ श्रुतबोध में मन्दाक्रान्ता का लक्षण स्पष्ट करते हुए लिखा है कि "हे सुभगे ! जिसमें पहले चार अक्षर गुरु हों, तदनन्तर हे मुग्धे ! बारहवें और ग्यारहवें दो अक्षर गुरु हों, पुनः हे कुमुदवासिनि ! तेरहवाँ और चौदहवाँ १. वृत्तरत्ताकर, ३/९४ ।। २. छन्दोनुशासनम्, २/२९० । ३. सुवृत्ततिलक, १/३५ । ४. छन्दोमञ्जरी, २१७/४ । ५. वृत्तवार्तिक, समवृत्त प्रकरण, ३६ । ६. वृत्तमौक्तिक, २०/४२२ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org