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________________ १० : जैनमेघदूतम् उल्लेख मिलता है । सीताजी की खोज के लिए सुग्रीव द्वारा हनुमान को दूत बनाकर लंका भेजने की कथा तो सर्वविदित ही है विशेषेण तु सुग्रीवो हनुमत्यर्थमुक्तवान्' । तद्यथा लक्ष्यते सीता तत्त्वमेवानुचिन्तय ॥ २ हनुमान जी को कार्यपटु एवं पराक्रमी समझकर श्रीरामचन्द्र स्वनामाङ्कित अँगूठी सीता के अभिज्ञानार्थ हनुमानजी को देते हैं ददौ तस्य ततः प्रीतः स्वनामांकोपशोभितम् । अंगुलीयमभिज्ञानं राजपुत्रयाः परन्तपः ॥ और अन्त में श्रीरामचन्द्र हनुमान से कहते भी हैंअतिबल बलमाश्रितस्तवाहं हरिवर विक्रमविक्रमैरनल्पैः । पवनसुत यथाधिगम्यते सा जनकसुता हनुमंस्तथा कुरुष्व ।। एक अन्य स्थल पर हनुमान जी सीता से कहते हैं अहं रामस्य सन्देशाद्देबि दूतस्तवागतः । वैदेहि कुशली रामः स त्वां कौशलमब्रवीत् ॥ सीता द्वारा कुछ सन्देह प्रकट करने पर हनुमान श्रीरामचन्द्र के गुणपराक्रम का वर्णन कर फिर सोता जी से कहते हैं तेनाहं प्रेषितो दूतस्त्वत्सकाशमिहागतः । त्वद्वियोगेन दुःखार्तः स त्वां कौशलमब्रवीत् ॥ अन्त में सीताजी हनुमान को श्रीराम का दूत मान लेती हैं एवं विश्वासिता सीता हेतुभिः शोककर्षिता । उपपनैरभिज्ञानैर्वृतं तमधिगच्छति ॥ सीताजी द्वारा वापस चलने के लिए प्रस्तुत न होने पर हनुमानजी उनसे कुछ अभिज्ञान माँगते हैं १. वाल्मीकि रामायण, किष्किन्धाकाण्ड, ४४।१ । २. वही, ४४।६ । ३. वही, ४४।१२ । ४. वही, ४४।१७ । ५. वही, सुन्दरकाण्ड, ३४१२ । ६. वही, ३४ ३५ । ७ वही, ३५।८४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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