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________________ जैनमेघदूतम् में छन्द-विमर्श छन्द : सामान्य परिचय : लौकिक छन्दःशास्त्र का सर्वप्रथम स्पष्ट विवरण आचार्य पिङ्गल ने अपने 'पिङ्गलछन्दःसूत्रम्' में दिया है। वैसे इनके इस ग्रन्थ में कुछ प्राचीन आचार्यों के लौकिक छन्दों से सम्बन्धित मत भी उल्लिखित मिलते हैं', अतः इस उल्लेख के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि लौकिक छन्दों का आविर्भाव पिङ्गलाचार्य से भी अति प्राचीन है । फिर भी लौकिक छन्द-ग्रन्थों में आचार्य पिङ्गल का “पिङ्गलछन्दःसूत्रम्' ही सर्वप्राचीन समुपलब्ध होने के कारण आचार्य पिङ्गल ही छन्दःशास्त्र के प्रणेता कहे जाते हैं और फिर "यशः पुण्यरवाप्यते" के अनुसार उन्हें छन्दःशास्त्र का जन्मदाता कहा भी जाना चाहिए । इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि पिङ्गल मुनि का छन्दः-शास्त्र पर इतना अधिक अधिकार हो गया था कि पिङ्गल और छन्दःशास्त्र यह दोनों शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द बन गये और "छन्द पढ़ते हैं"-यह कहने के लिए "पिङ्गल पढ़ते हैं" कहा जाने लगा। आचार्य पिङ्गल ने अपने इस तीन सौ आठ सूत्रों की स्वल्पकाय अष्टाध्यायी 'पिङ्गल छन्दःशास्त्रसूत्रम्' के चतुर्थ अध्याय के सात सूत्रों तक वैदिक छन्दों का तथा शेष अध्यायों में लौकिक छन्दों का वर्णन किया है। लौकिक छन्दःशास्त्र में अनेक वर्णिक छन्द मिलते हैं, परन्तु उन सभी छन्दों का उल्लेख कर पाना यहाँ पर विषय वृद्धि की दृष्टि से उचित नहीं प्रतीत होता है। परन्तु सामान्य रूप से इतना तो अवश्य ही कह सकते हैं कि संस्कृत साहित्य की अधिकांश रचना प्राचीनतम साहित्यसहित पद्यों में ही हई है। इसके उदाहरण वेदों में देखे जा सकते हैं। प्राचीनतम लौकिक साहित्य के आदिग्रन्थ वाल्मीकि रामायण में तेरह छन्दों का प्रयोग मिलता है। इसी तरह महाभारत अट्ठारह और आगे बढ़कर १. पिङ्गलछन्दःसूत्रम्-सर्वतः सैतवस्य, ५/१८; सिंहोन्नता काश्यपस्य, उद्धर्षिणी सैतवस्य, ७/९-१०; अन्यत्र रातमाण्डव्याभ्याम्, ७/३५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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