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२१४ : जैनमेघदूतम्' आचार्य मेरुतुङ्ग का जेनमेघदूतम् अपनी क्लिष्ट, व्याकरणनिष्ठ, समासबहुला भाषा द्वारा मात्र सुविज्ञ पाठकों को ही आकर्षित कर पाता है, क्योंकि सामान्य पाठक के बस की ही उसकी भाषा नहीं है। काव्य के प्रतिपद श्लेषादि के दर्भेद्य कपाट बिना कोश की सहायता से हिलते भर नहीं हैं, खुलने की तो बात ही अलग है । ____ अतः माधुर्य जैसे उत्कृष्ट गुण में निबद्ध होकर भी आचार्य मेरुतुङ्ग का जैनमेघदूतम् उतनी अधिक सफलता नहीं प्राप्त कर सका है, जितनी अधिक सफलता प्रसाद जैसे अति निम्न गुण में सन्निहित कालिदास के मेघदूत ने प्राप्त कर ली है। यही कारण है कि कालिदास का मेघदूत सामान्य जन-मानस को भी सम्यक आह्लादित कर पाता है, जबकि आचार्य मेरुतुङ्ग का जैनमेघदूतम् मात्र कुछ सुविज्ञ जन-मानस को ही आह्लादित कर पाता है।
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