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२१२ : जैनमेघदूतम् गुण-समीक्षण (कालिदासीय मेघदूत के परिप्रेक्ष्य में ) :
जैनमेघदूतम् के गुण-सम्बन्धी विवेचन को जब हम कालिदासीय मेघदूत के गुण-तत्त्वों के प्रकाश में देखते हैं तो संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि दोनों ही दूतकाव्य अपने-अपने स्थान पर महत्त्वपूर्ण हैं। कालिदासीय मेघदूत प्रसाद गुण से युक्त होने के कारण सहृदयसंवेद्य अधिक बन पड़ा है। प्रसादमयी भाषा में रचित होने के कारण यह काव्य सामान्यजन को भी सद्यः एवं सरलतापूर्वक गृहीत हो जाता है । जबकि आचार्य मेरुतुङ्गकृत जैनमेघदूतम् माधुर्य गुण के प्रमुख तत्त्वों से सन्निविष्ट होने के कारण किश्चित् क्लिष्टमयी भाषा से युक्त बन गया है। अतः यह काव्य कुछ दुरूह अवश्य हो गया है। यही कारण है कि यह काव्य किसी सामान्य-सहृदय को उतनी सरलता से एवं सद्यः-ग्राह्य नहीं हो पाता है, जितनी सरलता से प्रसादगुण से युक्त कालिदासीय मेघदूत सद्यः एवं सरलतापूर्वक ग्राह्य हो जाता है। .. कालिदास ने प्रसाद गुण में अपने मेघदूत काव्य को रचकर उसे जनसामान्य तक पहुँचाने की पूरी-पूरी कोशिश की है, जबकि आचार्य मेरुतुङ्ग ने मात्र अपनी रचना-कुशलता का ही प्रदर्शन करने के निमित्त अपने जैनमेघदूतम् काव्य को माधुर्य गुण से विभूषित किया है, जिससे उनका जैनमेघदूतम् जनसामान्य के हृदय को छ पाने के बजाय जन-सामान्य के हृदय के पास तक भी बिना कोष की सहायता के नहीं पहुंच पाता है। इस दुर्बोधता का कारण भी यही है कि उन्होंने-काव्य को अति उच्च स्तर का बनाने के लिए-उसमें ऐसे-ऐसे दुर्बोध शब्दों एवं समासों का श्लेषयुक्त भाषा में प्रयोग कर दिया है, जो जन-सामान्य की अपनी बुद्धि से परे हैं । अतः यह काव्य जन-सामान्य के लिए तो दुःसाध्य है ही, साथ ही साथ सहृदय-विज्ञ रसिक को भी कोष पलटने के हेतु मजबूर कर देता है।
माधुर्य गुण में संरचित होने के कारण जैनमेघदूतम् का काव्य-स्तर अवश्य ही किञ्चित् उच्च कहा जा सकता है, परन्तु काव्यशास्त्रीय-दृष्टि से इसकी माधुर्य गुण की प्रस्तुति पर आलोचनात्मक दृष्टि डालने से यह स्पष्ट परिलक्षित होता है कि जैनमेघदूतम् में माधुर्य गुण के समस्त लक्षण एवं विशेषताएँ नहीं परिलक्षित होती हैं। इसमें मात्र क्लिष्ट शब्दों एवं समास-बहुला भाषा का ही निदर्शन मिलता है। इस काव्य का महत्त्व इसी कारण है जो इसमें माधुर्य जैसा सर्वोत्कृष्ट गुण तथा व्याकरण
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