________________
- भूमिका : १८१ निदर्शना, अतिशयोक्ति, दृष्टान्त, तुल्ययोगिता, व्यतिरेक, विशेषोक्ति, यथासंख्य, अर्थान्तरन्यास, स्वभावोक्ति, सहोक्ति, भाविक, काव्यलिङ्ग, उदात्त, समुच्चय, पर्याय, अनुमान, परिकर, सम, स्मरण, विषम, अपह्नति, अप्रस्तुतप्रशंसा, दीपक, आक्षेप, विभावना, विरोध, व्याजस्तुति, पर्यायोक्त. समाधि, प्रत्यनीक, सामान्य, विशेष, हेतु, जाति, भाव, अवसर, अतिशय निषेध, संसृष्टि और सङ्कर अलङ्कारों का प्रयोग किया है। उपर्यक्त अलङ्कारों के निरूपण में दोनों कवियों ने विशेष बल इसी बात पर दिया है कि काव्य में इन अलङ्कारों के उपस्थापन से काव्य की भाषा एवं स्वरूप में कहीं पर भी भाव-भंगता या क्रम-भंगता न आने पाये । यह विशेषता इन दोनों काव्यों में उपलब्ध होती है।
उपमा अलङ्कार के निरूपण में भी दोनों कवियों ने पर्याप्त सिद्धहस्तता प्राप्त की है। महाकवि कालिदास के उपमा प्रयोग के विषय में तो यह उक्ति ही कही गयी है-उपमा कालिदासस्य । महाकवि कालिदास का सर्वाधिक प्रिय अर्थालङ्कार उपमा ही है. ऐसा इनके प्रयोगों से ही स्पष्ट होता है। आचार्य मेरुतुङ्ग ने भी अपने जैनमेघदूतम् में उपमा अलङ्कार का अत्यन्त रोचक व बहुविध प्रयोग किया है। जैसा कि हमने पूर्व में देखा कि उन्होंने जैनमेघदूतम् में उपमा अलङ्कार के तेंतालिस प्रयोग किये हैं, जबकि महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उपमा अलङ्कार के इतने अधिक प्रयोग नहीं किये हैं। यह हम दोनों कवियों की उपमा अलङ्कार की प्रयोग-संख्याओं के आधार पर कह सकते हैं। उपमा अलङ्कार के प्रयोग के विषय में दोनों कवियों को विशेष निपुणता प्राप्त थी, इस बात के स्पष्ट परिचायक दोनों कवियों द्वारा प्रस्तुत उनके उपमा प्रयोग ही हैं। __उत्प्रेक्षा अलङ्कार के प्रयोग में भी महाकवि कालिदास और आचार्य मेरुतुङ्ग दोनों ने ही पर्याप्त कुशलता प्रदर्शित की है। इसी प्रकार अर्थान्तरन्यास अलङ्कार के भी पर्याप्त प्रयोग इन दोनों काव्यों में प्रस्तुत किये गये हैं। महाकवि कालिदास और आचार्य मेरुतुङ्ग दोनों के अर्थालङ्कारों के प्रयोग अत्यन्त रोचक हैं। ___इन दोनों काव्यों के अलङ्कार-प्रयोगों की सम्यक् समीक्षा के सन्दर्भ में हम यह भी देख सकते हैं कि दोनों ही काव्यों में कुछ अलङ्कारप्रयोग ऐसे भी हैं, जिनका प्रयोग दोनों काव्यों में नहीं मिलता है । यथामहाकवि कालिदास के मेघदूत में प्रयुक्त परिसंख्या, प्रतीप, परिणाम, अर्थापत्ति, विकल्प आदि ऐसे अलङ्कार हैं, जिनके प्रयोग जैनमेघदूतम् में नहीं किये गये हैं। इसी प्रकार आचार्य मेस्तुङ्ग द्वारा जैनमेघदूतम् में प्रयुक्त अप-.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org