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१८० : जैनमेघदूतम् दोनों काव्यों में अनुप्रास के अनेक सुन्दर प्रयोग उपलब्ध होते हैं। महाकवि कालिदास ने यमक अलङ्कार का भी एक प्रयोग अपने मेघदूत में किया है । श्लेष अलङ्कार के भी अनेक प्रयोग किये हैं, तथा पुनरुक्तवदाभास के भी दो प्रयोग मेघदूत में प्रस्तुत किये हैं, जबकि आचार्य मेरुतुङ्ग ने जैनमेघदूतम् में यमक अलङ्कार का एक भी प्रयोग नहीं किया है। इसी प्रकार पुनरुक्तवदाभास अलङ्कार का भी जैनमेघदूतम् में एक भी प्रयोग नहीं किया गया है । हाँ, श्लेष अलङ्कार के प्रयोग में आचार्य मेरुतुङ्ग की प्रतिभा अवश्यमेव अत्यन्त चमत्कृत हुई है । आचार्य मेरुतुङ्ग के श्लेषप्रयोग अति उच्चकोटिक हैं। इसके साथ ही आचार्य मेरुतुङ्ग ने वक्रोक्ति अलङ्कार का भी एक प्रयोग जैनमेघदूतम् में किया है।
यहाँ विशेष ध्यातव्य यह है कि कालिदासीय मेघदूत में यमक और पुनरुक्तवदाभास अलङ्कार के जो प्रयोग हुए हैं, वे जैनमेघदूतम् में नहीं उपलब्ध होते हैं । इसी प्रकार जैनमेघदूतम् में प्रयुक्त वक्रोक्ति अलङ्कार का का प्रयोग कालिदासीय मेघदूत में नहीं उपलब्ध होता है। इस प्रकार सामान्य रूप से दोनों दूतकाव्यों में शब्दालङ्कार के विषय में किञ्चित् अंशों में ही समानता दृष्टिगत होती है, क्योंकि अनुप्रास और श्लेष ही दो ऐसे अलङ्कार हैं, जिनका प्रयोग इन दोनों काव्यों में मिलता है। उसमें भी श्लेष अलङ्कार के प्रयोग में कालिदास की अपेक्षा आचार्य मेस्तुङ्ग ही अधिक प्रभावी सिद्ध हुए हैं । शेष यमक, पुनरुक्तवदाभास, वक्रोक्ति आदि शब्दालङ्कार इन दोनों काव्यों में स्वतन्त्र एवं समान रूप से प्रतिपादित मिलते हैं। अतः शब्दालङ्कारों के प्रयोग के प्रति इन दोनों काव्यों में अंशतः विषमता दृष्टिगत होती है, क्योंकि ऐसे प्रयोग इन काव्यों में नहीं मिलते हैं। ___अर्थालङ्कारों के प्रयोग में भी कालिदासीय मेघदूत एवं आचार्य मेरुतुङ्ग के जैनमेघदूतम् में किञ्चित् साम्यता के साथ ही साथ किञ्चित् विषमता भी दृष्टिगत होती है। प्रायः दोनों कवियों ने अनेक अर्थालङ्कारों का प्रयोग अपने-अपने इन काव्यों में किया है। जहाँ महाकवि कालिदास ने अपने मेघदूत में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, समासोक्ति, निदर्शना, अतिशयोक्ति, दृष्टान्त, तुल्ययोगिता, व्यतिरेक, विशेषोक्ति, यथासंख्य, अर्थान्तरन्यास, स्वभावोक्ति, सहोक्ति, भाविक, काव्यलिङ्ग, पर्याय, उदात्त, समुच्चय, अनुमान, परिकर, सम, स्मरण, विषम, परिसंख्या, प्रतीप, परिणाम, अर्थापत्ति, विकल्प, संसृष्टि एवं संकर अलङ्कारों का प्रयोग किया है, वहीं आचार्य मेरुतुङ्ग ने जैनमेघदूतम् में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, समासोक्ति,
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