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________________ ६ : जैनमेघदूतम् प्राचीन ग्रन्थों में भी मूक पशुओं द्वारा विरह एवं प्रेम सन्देश प्रेषित करने के उदाहरण उपलब्ध होते हैं । रामायण में राम ने हनुमान' को दूत बनाकर सीता जी के पास भेजा था, जिनके हाथों सीता जी ने भी अपना प्रेमसन्देश राम के पास भेजा था । महाभारत में दमयन्ती ने राजा नल के पास से आये हुये हंस द्वारा अपना प्रेम सन्देश नल के समीप प्रेषित किया था । इन दूतों को निरा मूक पशु ही नहीं माना गया है, अपितु इनकी मनुष्य जैसी वाक् - शक्ति एवं चातुरी आदि का होना भी वैदिक शास्त्रों में उल्लिखित है | अतः इनको दूत बनाकर भेजने में कविकल्पना का कोई चमत्कारिक प्रभाव दृष्टिगत नहीं होता, फिर भी यह मानना किञ्चिदपि अनुचित नहीं प्रतीत होता कि कालिदास इन पूर्वोल्लेखों से प्रभावित नहीं हुए थे । वे स्वयं इस प्रभाव को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं इत्याख्याते पवनतनयं मैथिलीवोन्मुखी सा ॥ अतः स्पष्ट हो जाता है कि मेघदूत के रचना काल के समय कालिदास के नेत्रों के समक्ष, राम द्वारा हनुमान को दूत बनाकर सीता के पास अपना सन्देश भेजने की घटना अवश्यमेव उपस्थित थी । ऐसे ही कथानक का उल्लेख कालिदासीय मेघदूत के टीकाकार मल्लिनाथ ने अपनी टीका में भी किया है सीतां प्रति रामस्य हनुमत्सन्देशं मनसि निधाय कविः कृतवान् इत्याहुः । इस प्रकार संस्कृत-साहित्य के इतिहास में कालिदास के मेघदूत की नवीन रचना शैली ने एक नया ही युग खड़ा कर दिया, साथ ही जनमानस को भी अपनी ओर आकर्षित किया । इस सम्बन्ध में मि० फाँचे का यह कथन यथार्थ ही है कि - 'यूरोप के मनोव्यथा प्रदर्शित करने वाले (Elegy ) समूचे साहित्य में मेघदूत की सानी कोई नहीं रखता है' । अतः स्वभावतः मेघदूत की प्रख्याति प्राचीनकाल से ही सर्वमान्य रही है । वैसे उपलब्ध दूतकाव्यों में धोयी कवि का पवनदूत सर्वप्राचीन विदित होता है, फिर भी इसका कुछ पूर्वाभास इससे भी प्राचीन ग्रन्थ भवभूतिकृत मालती १. वैदिकशास्त्रों में इनको पशु जाति का अनुमानित किया गया है । २. वाल्मीकि रामायण, ४।४४ - ५।४० । ३. महाभारत, वनपर्व, ५३।३१-२ । ४. एसे आन कालिदासः डॉ० भान दाजी, पृ० ७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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