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४: जेनमेघदूतम्
दूतं चैव प्रकुर्वीत सर्वशास्त्रविशारदम् । इङ्गिताकारचेष्टनं शुचि दक्षं कुलोद्गतम् ॥ अनुरक्तः शुचिर्दक्षः स्मृतिमान्वेशकालवित् । वपुष्मान्वीतभीर्वाग्मी दूतो राज्ञः प्रशस्यते ' ॥
राजा को चाहिए कि वह सब शास्त्रों का विद्वान्, इंगित आकार और चेष्टा को जानने वाला, शुद्धचित्त, चतुर तथा कुलीन दूत को नियुक्त करे । अनुरक्त, शुद्ध, चतुर, स्मरणशक्तियुक्त, देश-काल का विज्ञाता, सुरूप वाला, निर्भीक एवं वाग्मी दूत श्रेष्ठ होता है ।
अग्निपुराणकार ने दूत का अतिसंक्षिप्त लक्षण देते हुए कहा हैदूतश्च प्रियवादी स्यादक्षीणोऽतिबलान्वितः ॥
राजा को चाहिए कि वह ऐसे व्यक्ति को दूत बनाये जो प्रियभाषी, अक्षीण और अत्यन्त बल - सम्पन्न हो ।
गरुड़पुराण में दूत का लक्षण निम्नवत् दिया गया है
बुद्धिमान्मतिमांश्चैव
परचित्तोपलक्षकः ।
क्रूरो यथोक्तवादी च एष दूतो विधीयते ॥
बुद्धिमान्, मतिमान्, परचित्ताभिप्राय विज्ञाता, क्रूर तथा जैसा कहा वैसा ही कहने वाला दूत होना चाहिए ।
महाभारत मेंदूत की योग्यताओं का उल्लेख करते हुए बतलाया गया है कि दूत को कुलीन वंशोत्पन्न वाग्मी (सुवक्ता), दक्ष, प्रियभाषी, यथोक्तवादी तथा स्मृतिमान् होना चाहिए
कुलीनः कुलसम्पन्नो वाग्मी दक्षः प्रियंवदः । यथोक्तवादी स्मृतिमान् दूतः स्यात्सप्तभिर्गुणैः ॥
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राजनीति-निपुण चाणक्य ने दूत का लक्षण देते हुए लिखा है
मेधावी वाक्पटुः प्राज्ञः परचित्तोपलक्षकः । धीरो यथोक्तवादी च एष दूतो विधीयते ॥
१. मनुस्मृति, ७।६३-६४ ।
२. अग्निपुराण, ८५।२ ।
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३. गरुड़पुराण, ६८।८ । ४. महाभारत, शान्तिपर्व, ८५ारंट।
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