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भूमिका : ३ आचार्य विश्वनाथ ने इस दूत का त्रिविध भेद स्पष्ट करते हुए लिखा
निसृष्टार्थो मितार्थश्च तथा सन्देशहारकः ।
कार्यप्रेष्यस्त्रिधा दूतो दूत्यश्चापि तथाविधाः ॥' . दूत उसे कहते हैं, जिसे विविध कार्यों हेतु यतस्ततः भेजा जाया करता है। ये दूत तीन प्रकार के हैं-(१) निसृष्टार्थ, (२) मितार्थ, (३) सन्देशहारक।
उभयोर्भावमुन्नीय स्वयं वदति चोत्तरम् ।
सुश्लिष्टं कुरुते कार्य निसृष्टार्थस्तु स स्मृतः॥२ निसृष्टार्थ दूत वह है, जो दोनों (नायक-नायिका) के मन की बात समझकर स्वयं ही सभी प्रश्नों का समाधान कर लेता है और प्रत्येक कार्य को स्वयं सुसम्पादित कर लेता है।
मितार्थभाषी कार्यस्य सिद्धकारा मितार्थकः ।
यावद्भाषितसन्देशहारः सन्देशहारकः॥' मितार्थ दूत वह है, जो बात तो बहुत कम ही करे परन्तु जिस कार्य के लिए भेजा गया हो, उस कार्य को अवश्य सम्पादित कर ले तथा सन्देशहारक दूत वह है, जो उतनी ही बात करे जितनी उसे बतायी गयी हो। दूत : साहित्य में : ___ अब प्रश्न उपस्थित होता है कि यह 'दूत' साहित्य के क्षेत्र में किस प्रकार आया ? इस विषय में प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि राजनीतिक दूत से ही अभिप्रेरित होकर यह दूत साहित्यिक क्षेत्र में उपस्थित हुआ है। क्योंकि साहित्यिक दूत के अधिकांश लक्षण राजनीतिक दूत के लक्षणों से ही साम्य रखते हैं। शास्त्रकारों ने राजनीतिक दूत के लक्षणों को अनेकविध स्पष्ट किया है। ___ मनुस्मृति में दूत के लक्षणों को स्पष्ट करते हुए महर्षि मनु लिखते
१. साहित्यदर्पण, ३।४७ । २. वही, ३४८ । ३, वही, ३१४९ ।
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