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________________ १२८ : जैनमेघदूतम् इस श्लोक में श्रीनेमि के कथन “लोकम्पणगुणखनी" में व्यंग्य रूप से ध्वनित होता है कि 'मैं लोकप्रीतिकारी शम, मार्दव, सन्तोष आदि गुणों को खान दीक्षा को प्राप्त करूँगा", जबकि उनके माता-पिता ने इसका वाच्यार्थ ग्रहण किया कि “जब लोकप्रीतिकारी गुणों से युक्त कन्या को प्राप्त करूँगा"। सत्या सत्यापितकृतकवाक्कोपमाचष्ट सख्यः साध्यः साम्नां न जलपषतां तप्तसपिर्वदेषः। रुद्ध्वा तन्न स्वयमतिबलाच्चाशु वश्यं विधाय स्वान्तं संविद्वदिममबलत्यात्मदोषाऽद्य नोद्यः ॥' इस श्लोक में श्रीकृष्ण की एक पत्नी सत्यभामा का कथन है कि इन अतिबलशाली श्रीनेमिनाथ को बलपूर्वक अपने वश में कर हम सब अपने "अबला" दोष को मिटा दें। इसमें व्यंग्य रूप से ध्वनित हो रहा है कि इतने बड़े महाबली को वश में करने के कारण आज से हमें कोई अबला नहीं कहेगा। हृद्यातोयध्वनितरसितः केकिकण्ठाभिरामक्षीमोल्लोचोन्नतघनततिर्दर्पणोत्कम्पशम्पः । रत्नश्रेणीखचितनिचितस्वर्णमङ्गल्यदामो दीप्तेन्द्रास्त्रः स्वनुकृतपयोधारमुक्तावचूलः ॥ पकाशकास्पदमृगमदो वर्यवेडूयंनद्धक्षोणीखण्डोन्मुखरुचिरहो मागधाधीतिकेकः । आसीत् पित्रा स्थपतिकृतिनाउनेहसा सद्ग्रहेणे वाम्भोदर्तुः प्रगुणिततमो मण्डपश्चौपयामः ॥ इस युग्मक श्लोक में वाच्यार्थ रूप से तो यही स्पष्ट हो रहा है कि विवाहमण्डप बहुभाँति सजाया गया था परन्तु व्यंग्य रूप से वर्षाकालीन आकाशीय वातावरण बहुत ही मनोहारी रूप में ध्वनित हो रहा है। श्रीनेमोशः प्रतिदिनमथो कोटिमष्टौ च लक्षा हेम्नः प्रातर्दवदभिजनं कल्पसालायते स्म । चित्रं कम्पं केरकिशलयं नाऽऽप पावप्रवेशे लग्नाः पुण्यस्मित्सुमनसश्छायया चाशि विश्वम् ॥ १. जैनमेघदूतम्, ३/१३ । २. वही, ३/२६-२७ । ३. वही, ४/१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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