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भूमिका : १२३ साधारण प्रतिभा का कार्य नहीं है। जैनमेघदूतम् में अभिव्यजित शान्त रस की सुधाधारा, राग-द्वेष से ग्रस्त मानव-समाज को शाश्वत् आनन्द प्रदान करने की क्षमता रखती है। आचार्य मेरुतुङ्ग ने इसके साथ ही अपने काव्य में दार्शनिक दृष्टिकोण भी अपनाया है। इससे यह काव्य कुछ सीमाओं तक और भी अधिक सरस और आस्वाद्य हो गया है। ____ कामरूप मेघ एवं कामुक यक्ष और राजीमती, ये तीनों मिलकर सम्पूर्ण जगती को काम के पावन-पीयष-प्रवाह में निमज्जित कराते हैं। तभी तो मेघदूतम् का प्रति-पद मानव की हत्-तन्त्री को एकदम झकझोर कर रख देता है । अतः ऐसी विलक्षण शक्ति से परिपूरित ये दोनों दूतकाव्य अनूठे एवं अद्वितीय हैं। ___ इस प्रकार हम देखते हे कि जहाँ कालिदासीय मेघदूत सांसारिक अनुभूतियों की अभिव्यञ्जना में संलीन है, वहाँ आचार्य मेरुतुङ्ग का जैनमेघदूतम् आध्यात्मिक अनुभूतियों को अभिव्यंजना में संलोन है । अतः यदि सांसारिक चित्तवृत्तियों की दृष्टि से देखा जाये तो कालिदास का मेघदूत श्रेष्ठ है और यदि आध्यात्मिक चित्तवृत्तियों की दृष्टि से देखा जाए तो आचार्य मेरुतुङ्ग का जैनमेघदूतम् उत्कृष्ट है ।
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