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भूमिका : १२१
परन्तु इस सन्दर्भ में यह अवश्य ही स्वीकार करना होगा कि कालिदासीय मेघदूत का विप्रलम्भ शृङ्गार रस पाठक के समक्ष जैसी चित्रात्मकता उपस्थित करता है, वैसी चित्रात्मकता उपस्थित करने में आचार्य मेरुतुङ्ग के जैनमेघदूतम् का विप्रलम्भ शृङ्गार रस समर्थ नहीं है । हाँ ! इसमें सम्वादात्मकता अवश्य मिलती है । इसका कारण भो है कि मेघदूत का यक्ष अपने विरहातुर हृदय के अति करुण मनः संवेगों को सीधे अपनी नायिका से न कहकर दूत मेघ के समक्ष प्रस्तुत करता है । इसीलिए मेघदूत में चित्रात्मकता दृष्टिगत होती है । जबकि इसके विपरीत जैनमेघदूतम् में नायिका राजीमती अपने दूत मेघ से अपने सन्देश का कथन कम करती है, बल्कि उसके समक्ष उपालम्भ - स्वरूप अनेक सम्वादात्मक तर्क प्रस्तुत करती है । मेघदूत का विप्रलम्भ शृङ्गार रस मात्र अपनी प्रिया के वियोग से व्यथित नायक के कामपीडित हृदय का उद्घाटन करता है, जबकि जैनमेघदूतम् का विप्रलम्भ शृङ्गार रस, प्रिय-वियोग से व्यथित नायिका की मनःस्थिति को तो स्पष्ट ही करता है साथ ही सांसारिक भोगों के प्रति विरक्ति को भी प्रदर्शित करता है ।
मेघदूत के विप्रलम्भ शृङ्गार में एक केवल संयोग होने की व्यग्रता हो चित्रित होती है, जबकि जैनमेघदूतम् के विप्रलम्भ शृङ्गार में संयोग की व्यग्रता के साथ, किञ्चित् उपालम्भ पूर्ण तर्कना भी मिलती है । इसका कारण भी स्पष्ट है कि मेघदूत के नायक-नायिका ( यक्ष-यक्षिणी) का वियोग बलात् हुआ है, इसलिए ऐसी दशा में नायक द्वारा नायिका को या नायिका द्वारा नायक को दोषी मनाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता, जबकि जैनमेघदूतम् के नायक श्रीनेमि स्वयमेव अपने मन से नायिका राजीमती का परित्याग कर, वैराग्य धारण कर लेते हैं और नायिका से दूर हो जाते हैं । अतः ऐसी स्थिति में नायिका द्वारा नायक श्रीनेमि से इस अलगाव का कारण पूछना अपेक्षित भी है । इसी कारण नायिका उपालम्भ स्वरूप अनेक प्रश्नों की झड़ी ही लगा देती है ।
विप्रलम्भ श्रृङ्गार रस के साथ ही मेघदूत एवं जैनमेघदूतम् दोनों काव्यों में सम्भोग श्रृङ्गार रस की भी अत्यन्त प्रचुरता मिलती है । दोनों काव्यों के ये संयोग-शृङ्गारिक वर्णन भी विचित्र ही हैं । परन्तु ये संयोगशृङ्गार के वर्णन दोनों काव्यों में गौण रूप से ही हैं, प्रधान रस के रूप में इसी का उपभेद विप्रलम्भ शृङ्गार रस ही है। फिर भी संयोग श्रृङ्गार के जो भी स्थल दोनों दूतकाव्यों में हैं, वे मूल में नायक-नायिका से सम्ब
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