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१२० : जैनमेघदूतम्
है कि मेघदूत एवं जैनमेघदूत दोनों काव्य मूलतः एक ही आधार पर प्रतिष्ठित हैं । दोनों काव्यों की रस - विषयक मूलभूत पृष्ठभूमि, विप्रलम्भशृङ्गार रस से ही सम्बद्ध है । जिस प्रकार कालिदास ने मेघदूत में शृङ्गार रस को प्रधान बनाकर अन्य रसों को गौण बना दिया है, ठीक उसी तरह आचार्य मेरुतुङ्ग ने भी शृङ्गार रस को ही प्रधान रखा है । यहाँ पर दोनों काव्यों के सम्बन्ध में विशेष ध्यातव्य यह है कि मेघदूत में कालिदास जहाँ प्रिय के अल्पकालिक वियोग में उत्थित होने वाले मर्मस्पर्शी भावोद्गारों का मनोरम कोष समाहित करते मिलते हैं, जैनमेघदूतम् में वहाँ आचार्य मेरुतुङ्ग प्रिया राजीमती के मार्मिक हृदयोद्वेलनों को चित्रित करते हुए साथ ही जीवन-व्यापी सत्य की अभिव्यञ्जना करते हुए मिलते हैं ।
आचार्यं मेरुतुङ्ग जैनमेघदूतम् को श्राङ्गारिक वातावरण में प्रारम्भ कर और उसे वाङ्गारिकता की चरमकोटि तक ले जाकर पुनः शनैः-शनैः उसे धार्मिकता का पुट प्रदान करते हुए शान्त रस की ओर ले गये हैं । कालिदास के मेघदूत के समान इस दूतकाव्य में केवल श्रृङ्गार रस के उभयपक्षों (संयोग एवं विप्रलम्भ) द्वारा नायक-नायिका का परस्पर विरह व अनुराग प्रदर्शन ही नहीं भरा पड़ा है, बल्कि त्याग और संयम को हो जीवन का प्रमुख पाथेय समझने वाले आचार्य मेरुतुङ्ग ने इस काव्य में अपनी संस्कृति के उच्च तत्त्वों को भी समाविष्ट कर दिया है, साथ ही इसमें साहित्यिक और शृङ्गारिक सौन्दर्य के साथ शील, संयम, भावशुद्धि आदि अध्यात्मपरक तत्वों का भी समन्वय किया गया है ।
चूँकि कालिदास आचार्य मेरुतुङ्ग से बहुत पूर्व के हैं, अतः इतना अवश्य ही कहा जा सकता है कि पश्चात्वर्ती आचार्य मेरुतुङ्ग के समक्ष, कालिदास का मेघदूत काव्य आदर्श के रूप में उपस्थित था । इसलिए आचार्य मेरुतुङ्ग ने अपने जैनमेघदूतम् काव्य को रचने में कालिदासीय मेघदूत से प्रेरणा अवश्य ही प्राप्त की होगी, इसमें संशय नहीं ।
जिस प्रकार कालिदासीय मेघदूत में नायक यक्ष और नायिका यक्षपत्नी ये दो आलम्बन विभाव हैं, मेघ- प्रादुर्भाव आदि उद्दीपन विभाव हैं, ज्ञानशून्यत्व आदि अनुभाव हैं, ग्लानि आदि व्यभिचारी भाव हैं तथा रति स्थायी भाव है; उसी प्रकार आचार्य मेरुतुङ्ग के जैनमेघदूतम् में नायक श्रीनेमि और नायिका राजीमती ये दो आलम्बन विभाव हैं, मेघ- प्रादुर्भाव आदि उद्दीपन विभाव हैं, ज्ञानशून्यत्व आदि अनुभाव हैं, व्यभिचारीभाव हैं तथा रति स्थायीभाव है ।
ग्लानि आदि
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