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________________ १०६ : जैनमेघदूतम् साहित्यशास्त्र में रस का अर्थ है-काव्यसौन्दर्य और काव्यानन्द या काव्यास्वाद । यही काव्यानन्द ही मूल रूप से हमारा अभिप्रेत रस है और वर्तमान में प्रकथित ब्रह्मानन्द या आत्मानन्द का वाचक है। काव्य के श्रवण या पठन से श्रोता या पाठक के चित्त में जो एक विचित्र प्रकार का विलक्षण आनन्द उत्पन्न होता है-वही रस है । व्याकरण की प्रक्रिया के अनुसार “रस" शब्द का अर्थ होता है-वह वस्तु विशेष, जिसका आस्वादन किया जा सके रस्यते-आस्वाद्यते इति रसः यह रस विभावादि भावों के संयुक्त संयोग द्वारा निष्पन्न होता है, जैसा कि नाट्यशास्त्र-प्रणेता भरतमुनि ने स्पष्ट किया है विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः (विभाव, अनुभाव एवं व्यभिचारी (भावों) के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है अर्थात् तीनों भावों के संयोग से स्थायीभाव रस रूप में परिणत होता है ।) तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार भोजन के रस-वेत्ता अनेक पदार्थों से युक्त व्यञ्जनों का आस्वादन करते हैं, उसी प्रकार अनेक भाव तथा अभिनय से युक्त स्थायीभावों का सहृदय-जन-मानस आस्वादन करते हैं । यह स्थायीभाव ही “रस" रूप को प्राप्त होता है। ___इस प्रकार विभावादि द्वारा अभिव्यंजित होने पर स्थायीभाव ही रस के रूप में परिणत हो जाता है और तब वह रस अलौकिक आनन्द का जनक बन जाता है। इसी को कुछ इस प्रकार से समझा जा सकता है कि जब यह विभावादि भाव काव्य, सङ्गीत, रंग आदि की सहायता से रंगमंच पर अभिनीत किया जाता है या पढ़ा जाता है, तब उस समय प्रेक्षक या पाठक के चित्त में वासना रूप में स्थित रति स्थायीभाव जागृत होकर उस चरम-सीमा तक उद्दीप्त हो जाता है, जहाँ पर प्रेक्षक या पाठक वीतविघ्न होकर अर्थात् देश-कालादि का विस्मरण न करते हुए प्रस्तुत प्रसंग में तन्मय हो जाने से आत्मविश्रान्तमय आनन्द में विभोर हो जाता है-यही आनन्द चेतना रस है । इस चेतनानन्द रूप रस की एकता और अनेकता के विषय में भारतीय काव्य-चिन्तन ने पर्याप्त चर्चा तो की है, परन्तु आज वह गौण ही है । १. नाट्यशास्त्र, ६/३३ । २. वही, ६/३४, ३५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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