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१०० : जैनमेघदूतम् वर्षण से विश्व का पालन करने वाला है। यह मेघ असाध्य उपकारों को करने वाला, अपने दान से कल्पवृक्ष एवं चिन्तामणि को भी परास्त करने वाला एवं जगत् की जीवन-लक्ष्मी (जल-विद्युत् आदि) को धारण करने वाला है। भला कौन है, जो इसको देखकर अपनी आँखों को विशाल नहीं बना लेता है।२ स्वभावसुन्दर इस मेघ का आबालवृद्ध सभी मन्त्र के समान स्मरण करते हैं। विश्व-स्रष्टा ने समस्त प्राणि-सष्टि मेघ के ही अधीन सन्निहित कर दी है। कालिदास ने मेघ के ऐसे महत्त्व एवं महिमा आदि के विषय में किंचित्मात्र भी नहीं लिखा है । हाँ! उन्होंने अपने काव्यगत मेघ को लोकविख्यात पुष्कर और आवर्तक नाम वाले उच्च मेघवंश में उत्पन्न तथा उसे इन्द्र का प्रधान अवश्य कहा है। अतः जैनमेघदूत एवं मेघदूत में जहाँ मेघ-विषयक कुछ साम्यताएँ मिलती हैं, वहीं कुछ विषमताएँ भी उपलब्ध होती हैं । काव्य-नायक-विचार : ___कालिदासीय मेघदूत और जैनमेघदूत दोनों ही काव्यों के नायकों में
भी पर्याप्त विभिन्नता प्राप्त होती है । मेघदूत का नायक यक्ष एक देवयोनि विशेष का है। अमरकोश की एक उक्ति के अनुसार देवताओं के आठ भेद हैं-ब्रह्मा, प्रजापति, इन्द्र, पितृगण, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और पिशाच ।" इन आठ देव-भेदों में यक्ष-योनि भी एक है। मेघदूत का नायक इसी यक्ष-योनि विशेष का है । इस यक्ष का नाम "हेममाली" है । यह यक्ष उस अलकानगरी का नागरिक है, जो स्वर्ग के समान केवल भोगभूमि है, कर्मभूमि नहीं। जबकि जैनमेघदूतम् का नायक एक देव विशेष है। वह हरिवंश के दशा) में प्रथम श्रीसमुद्र का पुत्र है । जो इस भु-खण्ड पर १. जैनमेघदूतम्, १/११ । २. वही, १/१२। ३. वही, १/१३ । ४. जातं वंशे भुवनविदिते पुष्करावर्तकानां जानामि त्वां प्रकृतिपुरुषं कामरूपं मघोनः ।
-मेघदूतम् : कालिदास, पूर्वमेघ, ६ (पूर्वार्द्ध)। ५. विद्याधराप्सरोयक्षरक्षोगन्धर्वकिन्नराः । पिशाचो गुह्य कः सिद्धो भूतोऽमी देवयोनयः ॥
--अमरकोश, १/१/११ ।
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