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भूमिका : ९९
और इधर मेरुतुङ्ग का वही इन्द्रधनुष से मण्डित कृष्ण - कान्ति-युक्त मेघ का मनोहर स्वरूप, बहुविध पुष्पों से ग्रथित माला को धारण किये हुए श्रीनेमि को स्मृति दिलाता मिलता है । इसी प्रकार मेघदूत के एक स्थल पर कवि ने शुभ्र कैलाश पर्वत पर अधिष्ठित, सूक्ष्म पीसे गये कज्जल सदृश कृष्ण मेघ की मनोहारी छटा को कृष्णवस्त्रधारी गौरवर्णवाले श्रीबलराम जी की शोभा के सदृश बताया है । "
वैज्ञानिकता :
मनोवैज्ञानिक प्रभावों के साथ ही साथ कालिदास ने मेघ का वैज्ञानिक विश्लेषण भी प्रस्तुत किया है । उन्होंने मेघ का पूर्णतया रासायनिक विश्लेषण करते हुए कहा है कि यह मेघ धूम्र, तेज, जल और वायु के समग्र समूह रूप है । कालिदास की यह व्याख्या, कालिदास को रसायनशास्त्र में भी निपुण सिद्ध करती है । इसके विपरीत आचार्य मेरुतुङ्ग ने जैनमेघदूतम् में ऐसी कोई वैज्ञानिक व्याख्या नहीं प्रस्तुत की है। अतः इस विषय में मेरुतुङ्ग का मौन रहना, मेरुतुङ्ग को रसायनशास्त्र के प्रति अनभिज्ञ सिद्ध करता है। इसके साथ ही जैनमेघदूतम् में कवि ने मेघ के वंश आदि का भी रंचमात्र उल्लेख नहीं किया है । अत: जैनमेघदूतम् का कवि शास्त्र के प्रति अनभिज्ञ था, ऐसा प्रतीत होता है । जबकि कालिदास शास्त्र के प्रति पूर्ण विज्ञ प्रतीत होते हैं ।
हम देखते हैं कि जहाँ मेघ की मनोवैज्ञानिक एवं प्राकृतिक सुषमा का दोनों काव्यों में अत्यन्त रमणीक दर्शन होता है, वहाँ मेघ के वैज्ञानिक महत्त्व के विषय में दोनों काव्य साम्यता स्थापित नहीं रख सके हैं ।
मेघ - महत्व - प्रतिपादन :
जैनमेघदूतम् में कवि द्वारा मेघ - महत्त्व को अवश्य प्रतिपादित किया गया है । जैसे राजहंस - राजहंसी सरोवर की सेवा करते हैं, वैसे ही गर्जन और विद्युत् आपकी सेवा करते हैं । यह मेघ अतिनम्र, त्रिरूपधारी देव के समान अपने सिंचन सत्त्व से अखिल - विश्व की सृष्टि करने वाला, अपने सत्त्व के अभाव से विश्व का क्षय करने वाला है एवं अपने सत्त्व के
१. जैनमेघदूतम्, २ / १९ ।
२. मेघदूतम् : कालिदास, पूर्वमेघ, ५९ ।
३. वही, पूर्वमेघ ५ ।
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४. जैनमेघदूतम्, १/१०
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