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________________ ९८ : जैनमेघदूतम् प्राकृतिक-चित्रण : ___ कालिदासीय मेघदूत एवं जनमेघदूत दोनों काव्यों में कवियों ने, वर्षाकालीन लक्षणों से सुशोभित मेघ का सविधि चित्रण किया है। ये समस्त चित्र पूर्णतया प्रकृतिगत ही हैं । आषाढमासीय इस मेघ की शक्तिशालिता के प्रति तर्क देते हुए आचार्य मेरुतुङ्ग ने जैनमेघदूतम् में कहा है कि शुचिआषाढ यह मेघ, आषाढ मास में उत्तरदिशा से प्रसरित वायु द्वारा पुष्टि को प्राप्त करता है।' आगे जैनमेघदूतम् में बलाकासमूहों से सुशोभित मेघ को चित्रित किया गया है। ऐसी ही प्राकृतिक मेघ-शोभा का चित्रण कालिदास ने कुछ इस प्रकार से प्रस्तुत किया है कि वर्षाकाल आते ही इन मेघों को देख, प्रसन्न-चित्त पपीहा मधुर शब्द करने लगता है। बगुलियाँ आकाश में पंक्तिबद्ध होकर मेघ का आश्रय ले लेती हैं । मानसरोवर जाने को उत्कण्ठित राजहंस, मृणाल के अग्रभाग के टुकड़ों को लेकर आकाश में मेघ के सहचर हो जाते हैं। हर्षाश्रुओं से युक्त नेत्रोंवाले मयूर, अपने तीव्र कण्ठस्वरों से मेघ का स्वागत करते हैं ।५।। मेघाच्छादित आकाश में चमकता बहुरंगी इन्द्रधनुष, प्रायः सभी को आकर्षित हो कर लेता है। फिर इस रंग-बिरंगे इन्द्रधनुष से मण्डित श्याम वर्ण मेघ की शोभा तो अवश्य ही अतुलनीय होगी। इसी बात को दोनों काव्यों में चित्रित करने की अपनी-अपनी शैली अति सुन्दर ढंग से व्यक्त की गयी है। सामान्यतः देखने में आता है कि धारावृष्टि कर मेघ के चले जाने पर भी लोग मेघ की ओर निहारा करते हैं, वृष्टि की और भी इच्छा से। इसी आशय को जैनमेघदूतम् में व्यक्त किया गया है कि धारावृष्टि कर चले जाने पर भी प्रजा पुनः वर्षानक्षत्र आने तक उसकी आशा लगाये रहती है। कालिदास का बहुरंगी इन्द्रधनुष से सज्जित श्याम मेघ का चमकता स्वरूप, बरबस मयूरपिच्छधारी श्रीकृष्ण की स्मृति कराता मिलता है। १. जैनमेघदूतम्, १/२१ । २. वही, १/३५ । ३. मेघदूतम् : कालिदास, पूर्वमेघ, ९ । ४. वही, ११। ५. वही, २२। ६. वही, २१ (१), २७ । ७. जैनमेघदूतम्, ३/५५ । ८. मेघदूतम् : कालिदास, पूर्वमेघ, १५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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