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भूमिका : ९३ कराता है तथा मानव-हृदय में “सर्वे भवन्तु सुखिनः" की विशुद्ध भावना उत्पन्न करता है । ऐसे ही सत्साहित्य से विशृङ्खलित हो रहे इस विश्व में विश्व-प्रेम की भावना भी प्रसरित होती है। हम देखते हैं कि इस दूतकाव्य में ऐसे ही सत्साहित्य विषयक, त्याग-प्रधान जीवन का अतिगूढ सन्देश भी छिपा हुआ है।
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