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________________ ७४ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन में वङ्कचूल प्रबन्ध को स्थान दिया है, इसलिए वकचूल के विक्रमादित्य से पहले अथवा वरिष्ठ समकालीन होने की सम्भावना अधिक है । वङ्कचूल प्रथम शताब्दी ई० पू० के पहले का राजपुरुष रहा होगा क्योंकि एक स्थल पर उसे उज्जयिनी के विद्वान् राजा का सामन्त बताया गया है, जो दूसरे स्थल पर उसे सुस्थिताचार्य का समकालीन बतलाता है । यदि वङ्कचूल के समकालीन राजाओं और आचार्यों का कालक्रम निर्धारण किया जाय तो उसके समय निर्धारण में सुगमता होगी । श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों साक्ष्य एक मत हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य २१० या २५५ वीर सं० ( ३१७ या ३१२ ई० पू० ) में हुआ था । किन्तु यह तिथि उज्जयिनी पर चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन- विस्तार की सूचक है, न कि उसके पाटलिपुत्र में राज्यारोहण की। वह इस तिथि के चार-पाँच वर्ष पूर्व ३२१ ई० पू० में गद्दी पर बैठा था और मगध में स्थिति सुदृढ़ करने के बाद उसने उज्जयिनी पर आक्रमण किया होगा । इससे सिद्ध होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ( ३२१ - २९७ ई० पू० ) के समकालीन सुस्थिताचार्य ( निधन १२८ ई० पू० ) नहीं थे बल्कि भद्रबाहु द्वितीय थे जिनके साथ वह दक्षिण गया और अनशन कर शरीर त्यागा होगा | अतः सुस्थिताचार्य को जिस चन्द्रगुप्त का समकालिक बताया गया है वह मौर्य साम्राज्य-संस्थापक चन्द्रगुप्त नहीं अपितु दशरथ मौर्य का भाई और उत्तराधिकारी सम्प्रति ( २१६-२०७ ई० पू० ) हो सकता है । कई एक इतिहासकार सम्प्रतिको मौर्यवंश का द्वितीय चन्द्रगुप्त और कई उसे जैन अशोक तक मानते हैं । ' सम्प्रति ने अशोक, कुणाल और दशरथ तीनों के शासन-कार्यों में सहायता की थी । उसे पाटलिपुत्र और उज्जैन दोनों में शासन करते I १. जैप, पृ० १९६, पृ० २११; मुकर्जी, आर० के० : चन्द्रगुप्त मौर्य ऐण्ड हिज टाइम्स, दिल्ली, १९५२, पृ० ३९-४१ पाण्डेय, राजबली : प्राचीन भारत, पृ० १९१ । २. स्मिथ : अर्ली हिस्टरी ऑफ इण्डिया, पृ० २०२; पाण्डेय, राजबली : प्राचीन भारत, पृ० १८३, जैप, पृ० २०५ विशाल भारत, पृ० २७५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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