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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
पार्वती नदी है जो भोपाल से होती हुई चम्बल में गिर जाती है। इसके समीपवर्ती वनीय प्रदेश ही पारेत जनपद हैं ।
इसी पारेत जनपद में चर्मण्वती और रन्ति नदी के उल्लेख वङ्कचुल प्रबन्ध में आये हैं। चर्मण्वती आधुनिक चम्बल है और यमुना की सहायक नदी है। वध्य गायों के चर्म से रिसते हुए रक्त से इस नदी का उद्भव हुआ था। रन्तिदेव द्वारा यज्ञ में काफी संख्या में गायों की बलि दी गयी थी। इसलिए चर्मण्वती को रन्ति नदी भी कहा जाने लगा। राजशेखर कहता है कि दिपुरी नगरी पारेत जनपद की सीमा पर इसी चर्मण्वती नदी के तट पर स्थित थी। उसी स्थान के समीप चर्मण्वती का जलदुर्ग और घने जंगलों में भीलों का राज्य था। भीलों के पल्लीपति की मृत्यु के बाद वकचूल को भीलों के प्रमुख का दायित्व सौंपा गया। आज भी चम्बल घाटी के बीहड़ और भील आदिवासी विख्यात हैं।
दिपुरी तीर्थ के लिए अर्बुद पर्वत से अष्टापद आना पड़ता था। प्रबन्धकोश से स्पष्ट है कि राजा वङ्कचूल ही सिंहगुहापल्ली के समीप ढिपुरी तीर्थ का निर्माता था। जैनों ने मानव-आवासों से दूर पवित्र स्थानों को चुना क्योंकि उनके सम्प्रदाय का चरित्र तापसी-मार्ग है और वे पशुवध को बचाना चाहते हैं। इसलिए राजपूताने में आबू पर्वत, काठियावाड़ में पालीताना और गिरनार, मालवा में धुमनार की पहाड़ी और पूर्व में पारसनाथ पहाड़ी का उन्होंने चयन किया। .. इन प्राकृतिक और भौगोलिक उल्लेखों से प्रतीत होता है कि ढिपुरी तीर्थ मालवा की धुमनार-पहाड़ी पर स्थित रहा होगा जहाँ
आज अनेक जैन गुफाएँ हैं क्योंकि बूंदी से कोटा जाते समय बीच में वारोली, धुमनार की पहाड़ी, चम्बल नदी, झालरा पट्टन, चन्द्रावती आदि स्थान आते हैं। धुमनार पहाड़ी का व्यास लगभग ८ किलोमीटर और ऊँचाई ४२.५ मीटर है। ऊपर समतल मैदान है, उसके
१. क्रुक, डब्ल्यू० : इन्साइ७ रि० ऐ० एथि०, १९५२, जिल्द दसवीं, पृ०
२४-२५ । २. जैपइ, पृ० २०५।
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