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________________ ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन ( क्रमशः ) [ ७१ लिए भेजा । युद्धकला में अद्वितीय वङ्कचूल ने प्रतिपक्षी को जीत तो लिया किन्तु स्वयं उसका शरीर घाव से जर्जर हो गया और वह उज्जयिनी लौटा | वङ्कचूल के चौथे व्रत की परीक्षा शेष थी । उपचार के लिए राजवैद्यों ने उसे काक-मांस भक्षण का परामर्श दिया । वङ्कचूल को यह स्वीकार नहीं था । मित्र जिनदास आदि सभी के सारे प्रयत्न विफल हुए । धर्माराधन ही वचल की औषधि थी । चूँकि वङ्कचूल ने काकमांस भक्षण नहीं किया, उसे बारहवाँ स्वर्गं अच्युत - कल्प प्राप्त हुआ । वल का वर्णन प्रबन्धकोश के अलावा जिनप्रभकृत विविध - तीर्थकल्प ( १३३२ ई० ) में भी उपलब्ध है । विडम्बना यह है कि प्रबन्धकोश का 'वङ्कचुल प्रबन्ध', विविधतीर्थकल्प के 'ढिपुरीतीर्थकल्प' तथा 'ढिपुरीस्तव' नामक प्रबन्धों से अक्षरशः उद्धृत किया गया है ।" १९३५ ई० में जिनविजय ने कहा था कि ऐतिहासिक दृष्टि से वङ्कचूल की कथा वैसी अज्ञात है, जैसी रत्नश्रावक की । फिर भी उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर इस प्रबन्ध की ऐतिहासिकता स्थापित करने का प्रयास किया जायगा । सर्वप्रथम पारेत जनपद के समीकरण का प्रश्न उठता है। राजशेखरसूरि के आवास प्रदेश ढिल्लिका ( वर्तमान दिल्ली : से पारेत और कश्मीर काफी दूर थे । इसलिए उसने वहाँ के वङ्कचूल नामक राजा और रत्न नामक श्रावक के इतिवृत्त अत्यन्त सामान्य प्रकार के ही दिये हैं । पारेत जनपद सम्भवतः पारद ही है । पारद लोग पश्चिमी भारत के निवासी थे, जिन्होंने चम्बलघाटी तक अपना प्रसार कर लिया था । पुराणों में वर्णित पारा आधुनिक वंशीय ) भगदत्त था तथा हर्षवर्धन के समय में भास्कर वर्मन । राजा बङ्कचूल के समय में कामरूप के राजा का नाम दुर्धर था । १. जिनविजय, प्रास्त० वक्तव्य, प्रको, पृ० १ । २. रामायण ( चतुर्थ, ४४. १३ ); महाभारत, भीष्म १०. ६४, सभा० ५२. ३-४ ), पुराणों, भुवनकोश, बृहत्संहिता, जैनग्रन्थ प्रज्ञापणा, बोद्धग्रन्थ महामायूरी में आया है । दे० मनुस्मृति, १०.४४; इण्डि० एण्टि०, २२, पृ० १८७; ज ऑफ द यू० पी० हिस्टोरिकल सोसाइटी, १५, भाग २, पृ० ४७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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