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अध्याय-५
ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन
(क्रमशः)
प्रस्तुत अध्याय पिछले अध्याय का पूरक है । प्रबन्धकोश के पन्द्रह प्रबन्धों का ऐतिहासिक मूल्यांकन कर लेने के बाद अब शेष नौ प्रबन्धों के ऐतिहासिक तथ्यों पर क्रमशः प्रकाश डाला जायगा। १६. बङ्कचूल प्रबन्ध
पारेत जनपद की सीमा पर चर्मण्वती के तट पर ढीपुरी नगरी थी। वहाँ के राजा विमलयश और रानी सुमङ्गला को पुष्पचूल और पुष्पचूला नामक दो सन्तानें हुईं । बाल्यकाल में अनर्थक कार्य करने के कारण राजकुमार पुष्पचूल को वङ्कचूल कहा जाने लगा। रुष्ट होकर राजा ने वङ्कचूल को निर्वासित कर दिया। ... जङ्गल में भीलों ने उस राजपुत्र (क्षत्रिय ) को सिंहगुहापल्ली का पल्लीपति बना दिया। एक बार वर्षाऋतु में सुस्थिताचार्य अर्बुदपर्वत से अष्टापद आये और सिंहगुहापल्ली में टिके । राजा वङ्कचूल ने अपनी राज्य सीमा के अन्तर्गत धर्मकथा कहने और उपदेश देने की मनाही कर दी। सुस्थिताचार्य की सरलता से वङ्कचूल प्रभावित हुआ
१. प्रको, पृ० ७५, वितीक, पृ० ८१ । यह सम्भवतः उत्तर-पश्चिम की
किसी बर्बर जाति का निवास स्थान रहा हो ( पाजिटर : एं० ई० हि. ट्रे०, पृ० २०६, २६८)। पुराणों (मार्कण्डेय, सर्ग ५२, २०; वायु, ४५,
९८ ) में इसके उल्लेख हैं। २. प्रको, पृ० ७५-८०; वितीक ( चर्मण्वती ) पृ० ८१, ८२; चर्मण्वती
( चम्बल ) यमुना की सहायक नदी है । अरावली से निकलती है। अष्टाध्यायी ( आठवाँ, २. १२ ) और पुराणों ( पद्म, उ० खण्ड, पद ३५.३८; मार०; ५७. १९-२० ) में चर्मण्वती के वर्णन आते हैं।
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