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________________ ६६ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन सातवाहन की माता ने शेष नागराज का स्मरण किया। शेष द्वारा प्रदत्त एक अमृत घट के प्रभाव से मिट्टी के अश्व, रथ, हाथी, पदिक वाहन सजीव हो गए । विक्रमादित्य अवन्ति भाग गया। इसके पश्चात् सातवाहन का राज्याभिषेक हुआ । प्रतिष्ठानपुर में दिव्य वास्तुअभिधान बने और दक्षिणापथ से लेकर उत्तर में ताप्ती पर्यन्त विजय की गयी और सातवाहन ने अपना संवत्सर प्रवर्तित किया । वह जैन हो गया । कालान्तर में लोक - प्रसिद्ध सातवाहन इतिवृत्त इस प्रकार है । बाद वाले सातवाहन राजा का जन्म नागह्रद' में हुआ था जहाँ पीठजादेवी का मन्दिर आज भी है । राजा हाल के समय में 'सातवाहन शास्त्र" की रचना हुई । हाल ने खरमुख को अपना दण्डाधिकारी नियुक्त किया था । अन्त में राजशेखर कहता है कि सातवाहनों की परम्परा में शक्तिकुमार राज्याभिषिक्त हुआ था किन्तु विद्वान् जैन इसे संगत नहीं मानते हैं । सातवाहनों के शासन की प्रारम्भिक तिथि २८ ई० पू० माननी होगी । गोपालाचारी के अनुसार सातकर्णि ( प्रथम ) पुराणोक्त कृष्ण का पुत्र न होकर सिमुक का था। क्योंकि इस सातकणिका कलिंग १. नागह्रद का समीकरण मध्यप्रदेश के नागदा स्थान से जो उज्जैन के समीप है । दे० मजुमदार, आर० सी० द क्लासिकल एज, भा० वि० भवन, बम्बई, १९४४, पृ० १५८ । २. सातवाहन राजा हाल के समय में सातवाहनों के सम्बन्ध में जो शास्त्र बना उसे परवर्ती काल में 'गाथा सप्तशती' के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हुई क्योंकि मेरुतुङ्ग ( प्रचि०, पृ० १०) सूचित करता है कि सात सौ गाथाओं वाला 'सातवाहन' संग्रह, गाथा - कोश- शास्त्र था। परम्परया यह 'गाथा सप्तशती' सातवाहन नरेश हाल द्वारा प्रणीत मानी जाती है । दे० पाण्डेय, च० भा० : आ० सा० सा० का इति०, पृ० ९०-९१ । ३. याजदानी, पृ० ७८ । ४. दे० पाण्डेय, चन्द्रभान, पृ० ४३ । Jain Education International किया जाता है ( सम्पा० ) : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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