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ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन
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तर्क दिया कि काव्य में संख्या की अपेक्षा गुण का अधिक महत्व होता है। फलतः दोनों को पुरस्कृत किया गया। पुरातन-प्रबन्ध-संग्रह के इस इतिवृत्त की पुष्टि कृष्णकवि द्वारा संकलित सुभाषित रत्नकोश से भी होती है। ___ जहाँ तक दूसरे प्रश्न का सम्बन्ध है, सम्भवतः मदनकीर्ति ही कुमार्ग में ठोकरें खाते-खाते अर्हद्दास बन गये। 'अर्हदास' विशेषण जैसा कि मालूम होता है, वास्तविक नाम नहीं। उनके ग्रन्थों का प्रचार प्रायः कर्नाटक में ही रहा। विशालकीर्ति के प्रयत्नों से वे सत्पथ पर लौट आये और फिर अहदास बन गये । १५. सातवाहन प्रबन्ध
सातवाहन का जन्म प्रतिष्ठानपुर में हुआ था। उसकी माता एक अप्रतिम रूपवती विधवा ब्राह्मणी थी और पिता शेष नामक नागराज था, जिसने उपभुक्ता विधवा को यह वचन दिया था कि 'संकट में मेरा स्मरण करना' । बाल्यावस्था में वह बालक अपने मित्रों के साथ क्रीड़ा करता था। वह स्वयं राजा बनकर मित्रों के लिए कृत्रिम वाहन हाथी, घोड़े, रथ आदि प्रदान किया करता था। 'सनोति' का अर्थ दान देना होता है, इस कारण वाहनों का दान देने से वह 'सातवाहन' कहलाया। किन्हीं कारणों से सातवाहन को प्रतिष्ठानपुर में राजा घोषित किया गया। वहाँ के एक वृद्ध के निधनोपरान्त उसके चारों पुत्रों के विवाद का निर्णय सातवाहन राजा ने ही बखूबी कर दिया था।
यह सुनकर उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य ( ५७ ई० पू० ) ने प्रतिष्ठानपुर को सेना द्वारा चारों ओर से घेर लिया। संकट के समय
१. भण्डारकर प्रतिवेदन ४, पृ० ५७ । २. सनोतेर्दानार्थत्वात् लोकः 'सातवाहनः' इति व्यपदेशं लम्भितः। १४वीं
शताब्दी में जिनप्रभसूरि ने 'सातवाहन' शब्द की व्याख्या वितीक में इस प्रकार की है। व्याख्या का श्रेय जिनप्रभसूरि को मिलता है क्योंकि उन्हीं के कल्प से प्रको में यह प्रबन्ध शब्दशः उद्धृत किया गया है।
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