________________
६४ ]
प्रबन्धकोश का ऐतिहासिवः विवेचन
के पूर्वजों से सम्बद्ध था। उन दोनों के प्रणय-संवाद ने यवनिका दूर और कौमार्य-व्रतभंग कर दिया। संशय होने पर राजा ने छिपकर प्रणय-कलह और अकृत्य देखा। उसने मदन के वध की आज्ञा दे दी। लेकिन राजकुमारी के दुस्साहस और मन्त्री की सलाह से दिगम्बर मुक्त कर दिया गया । अन्ततः उन दोनों का विवाह हुआ।
जव विशालकीति ने यौवनधर्म के कुसंग की महिमा सुनी तब उन्होंने दिगम्बर मदन को बोधित करने के लिए चार शिष्यों को भेजा। उसके उत्तर में मदनकीर्ति ने गुरु के पास कतिपय पद्य लिखकर भेजे जिनसे यह ध्वनित हुआ कि प्रिया-दर्शन द्वारा निर्वाण प्राप्त हो सकता है। गुरु स्तब्ध रह गये और मदनकीर्ति सम्भवतः विविध विलासिताओं का भोग करता रहा ।
मदनकीर्ति वह दिगम्बर कवि है जिसके ऊपर राजशेखर ने एक पृथक् और पूरा प्रबन्ध लिखकर अपने को साम्प्रदायिकता की आँच से बचा लिया है। मदनकीर्ति दिगम्बर के गुरु विशालकीति का उल्लेख तो प्रबन्धकोश को छोड़कर अन्य किसी भी पूर्ववर्ती जैन-प्रबन्ध में नहीं हुआ है। स्वयं मदन का वर्णन प्रबन्धकोश के अलावा पुरातनप्रबन्धसंग्रह में केवल एक स्थल पर यत्किञ्चित् हुआ है । अतएव राजशेखर द्वारा तत्सम्बन्धी एक स्वतन्त्र प्रबन्ध रचना उसकी धर्म-सहिष्णुता
और इतिहास-प्रियता का द्योतक है। ___ मदनकीति से सम्बन्धित दो प्रश्न हैं जिनका सन्दर्भ प्रबन्धकोश में नहीं है। एक है मदनकीर्ति और हरिहर की स्पर्द्धा और दूसरा है मदनकीर्ति और अर्हत्-दास की जीवनीविषयक समानता। ____ मदनकीति और हरिहर की स्पर्धा का वर्णन पुरातनप्रबन्धसंग्रह में संगृहीत है। वस्तुपाल की आज्ञानुसार एक समय में उन दोनों में से कोई एक ही साहित्यिक गोष्ठी में प्रवेश कर पाता था। लेकिन एक बार दोनों का एक साथ समागमन हो गया। उनके विवाद को समाप्त करने के लिए वस्तुपाल ने शर्त रखी कि जो एक सौ श्लोक तत्काल रच देगा वह ही महाकवि कहलायेगा। मदनकीर्ति ने शीघ्र ही १०० श्लोक रच दिये, किन्तु हरिहर ६७ ही बना पाया। उसने १. पुप्रस, पृ० ७७ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org