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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
प्रबन्ध उस पर लिखा है । वस्तुपाल को उपनाम 'वसन्तपाल' देने वालों में हरिहर एक था । हरिहर अपने समकालिक सोमेश्वर के काव्यों की सराहना किया करता था । उस कवि ने अपनी कीर्तिकौमुदी' में हरिहर का वर्णन किया है । हरिहर के कुछ पद्य प्रबन्धकोश में उद्धृत हैं ।
१३. अमरचन्द्रकवि प्रबन्ध
अमरचन्द्र अणहिलपत्तन के वायट महास्थान में जीवदेवसूरि और जिनदत्तसूरि की शिष्य परम्परा में हुए। वह बुद्धिमान था और उसने अरिसिंह से सिद्ध सारस्वत मन्त्र ग्रहण किया था । अमर ने काव्यकल्पलता नामक कविशिक्षा, छन्दोरत्नावली, सूक्तावली, कला-कलाप और बाल- भारत की रचना की । बाल-भारत में प्रभात-वर्णन बड़ा सुन्दर किया गया है ।
जैसे संस्कृत-साहित्य में कालिदास दीपशिखा कालिदास, माघ घण्टा - माघ और हर्ष अनंगहर्ष कहलाते हैं, वैसे ही कवि -समूह ने अमरचन्द्र को 'वेणीकृपाण' विरुद् से विभूषित किया था। अमर महाराष्ट्र आदि के राजाओं द्वारा पूजित था । अमरचन्द्र के ग्रन्थों की कीर्ति सुनकर धवलक्क के राजा गुर्जराधिपति वीसलदेव ( १२४६-६४ ई० ) अपने प्रधान ठक्कुर वइजल को भेजकर अमरकवि को राजसभा में आमन्त्रित किया ।
अमरकवि ने सोमादित्य, कृष्णनगर निवासी कमलादित्य, नानाक आदि अनेक कवियों की समस्या- पूर्ति की । एक बार अमर अपने कला गुरु अरिसिंह को राजा के पास ले गये थे । कालान्तर में अमर ने 'पद्म' के नाम पर पद्मानन्द नामक शास्त्र की रचना की थी ।
कमलादित्य के निवास स्थान कृष्णनगर का समीकरण वायुपुराण में वर्णित ' कृष्णगिरि से नहीं हो सकता है, क्योंकि यह हिन्दूकुश पर्वत
१. की ० कौ०, प्रथम, २५, पुण्यविजय संस्करण, १९६१, पृ० ४। २. क्योंकि अमरचन्द्र ने बाल- भारत के एक श्लोक में नायिका के केशों ( वेणी ) की तुलना कामदेव के कृपाण से की है ( आदिपर्व, ११.६ ) ३. वायुपुराण, अ० ३६ ।
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