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ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन
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श्रीहर्ष का वंशज हरिहर नैषध की प्रतिलिपि गुजरात में पहलेपहल लाया था और वस्तुपाल की ही प्रेरणा से उस ग्रन्थ का खूब प्रचार उस प्रान्त में हो गया था ।
१२. हरिहर प्रबन्ध
हरिहर नैषधचरित के कर्ता हर्षकवि ( लगभग ११७४ ई० ) का वंशज था वह गौड़देशीय सिद्ध सारस्वत और धनाढ्य व्यक्ति था । उसने गौड़ देश से गुजरात की ओर मार्ग में प्रभूत दान देते हुए प्रस्थान किया । धवलक्क की सीमा में पहुँच कर उसने वीरधवल, वस्तुपाल और सोमेश्वर कवि के लिए आशीर्वचन भेजा । वीरधवल और वस्तुपाल तो बड़े प्रसन्न हुए किन्तु सोमेश्वर की ईर्ष्या बढ़ गयी ।
एक बार राजसभा में सोमेश्वर ने १०८ श्लोक पढ़े । तब हरिहर कहा, 'ये सब श्लोक उज्जयिनी के भोजदेव ( १०१० -५५ ई० ) के सरस्वती कण्ठाभरण प्रासाद की प्रशस्ति में मेरे देखे हुए हैं ।" तदनन्तर हरिहर ने उन सब श्लोकों को ज्यों-का-त्यों सुना दिया । फलतः राणक खिन्न, वस्तुपाल व्यथित और सोमेश्वर मृतक के समान जड़वतु हो गए। बाद में सोमेश्वर और हरिहर में प्रगाढ़ मैत्री हो गयी ।
तदनन्तर वस्तुपाल की साहित्यिक गोष्ठियाँ बड़ी सजीव होने लगीं । हरिहर यथावसर हर्षकवि कृत नैषध महाकाव्य को पढ़ता रहता था । वस्तुपाल द्वारा नैषध की प्रति माँगने पर हरिहर ने केवल एक रात्रि के लिए अपनी निजी प्रति दी । वस्तुपाल ने उस एक रात में ही उसकी प्रतिलिपि करवा ली। इसके बाद हरिहर काशी में अपने लिए सिद्धि प्राप्त करने चले गए ।
महामात्य वस्तुपाल के युग की साहित्यिक विभूतियों में से एक हरिहर भी था । इसीलिए राजशेखर ने अपने प्रबन्धकोश में एक पूरा
१. दे० शिवदत्त : नैषधीयचरित, प्रस्ता०, पृ० ९-१३ कृष्णमाचारियर, क्लैसिक संस्कृत लिटरेचर, पृ० १७७ - १७८; बहुरा : विशेष ज्ञातव्य, रामाफो, प्रथम भाग, पूर्वार्द्ध ।
२. तुलना कीजिए, प्रचि, पृ० ४० । उक्त प्रासाद-पट्टिका में उत्कीर्ण प्रशस्ति महाकवि धनपाल द्वारा रचित थी ।
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