________________
५०
प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
अपनी बहन को दी गयी प्रतिज्ञा को दुहराया और 'उत्खातप्रतिरोपितव्रताचार्य' का विरुद धारण किया ।' _हेमसूरिने कुमारपाल को पूर्वजन्म का वृत्तान्त बतलाया कि महावीर-निर्वाण से ६४ वर्ष पश्चात् चरमकेवली जम्बू स्वामी को सिद्धि प्राप्त हुई । उसके १७० वर्ष बाद स्थलभद्र स्वर्ग गये। फिर वज्रस्वामी दसपूर्वी और आदि संहनन गये । तदनन्तर धीरे-धीरे पूर्वकाल के सभी स्वामी प्रलय को प्राप्त हए। पूर्वजन्म वाला वाणिज्यारक अगले जन्म में जयसिंहदेव हुआ और जयताक मरकर दूसरे जन्म में कुमारपाल हुआ।
हेमचन्द्र की जीवनी व उपलब्धियों का विशेष वर्णन प्रबन्धकोश के अलावा प्रभावकचरित, प्रबन्धचिन्तामणि, कुमारपाल-प्रबन्ध और जिनमण्डनकृत कुमारपालचरित में अधिक आता है । जयसिंह सूरि के कुमारपालचरित में भी उल्लेख है। भाउदाजी, पण्डित और ब्यूलर ने उसके जीवनचरित्र का सांगोपांग वर्णन किया है । परन्तु प्रश्न उठता है कि सिद्धराज के यहाँ हेमचन्द्र ने प्रतिष्ठा क्यों पाई ? धाराविजय के अवसर पर सिद्धराज ने भोजयुगीन साहित्य-सर्जना देखी होगी और वह गुजरात की ह्रासमान साहित्यिक दशा से व्यथित हुए होंगे। तब गुजरात के साहित्य की श्रीवृद्धि का कार्य हेमचन्द्र के हाथों में दिया होगा । अतः हेमचन्द्र का प्रवेश न तो राजनीतिक था और न धार्मिक । पाँच वर्ष की वय में चाङ्गदेव दीक्षित होकर सोमचन्द्र और २१ वर्ष की आयु में सुरि-पद पर प्रतिष्ठित होकर हेमचन्द्र सूरि कहलाया। 'न्यायकन्दली' टीका में राजशेखर कहता है कि हेमचन्द्र ने
१. इसका शाब्दिक अर्थ हुआ राजाओं को उन्मूलित कर पुनः-स्थापित करने
के व्रत में कुशल । तुलना कीजिये -प्रयाग-प्रशस्ति में वर्णित समुद्रगुप्त
की भ्रष्ट राज्य उन्मूलन नीति से । २. दे० देशीनाममाला ऑफ हेमचन्द्र, ( सम्पा० ) पिशेल, आर० : द्वितीय
संस्करण, १९३८, पृ० १-९२; कुमारपाल प्रबन्ध की प्रस्तावना, ज बा बा रा ए सो, भाग २५वाँ, पृ० २२२-२२४; फोर्स कृत रासमाला ( सम्पा० ) पण्डित, एस० पी० : भूमिका, हेमजी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org