SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन ५७ जातीय वणिक् थे । चाङ्गदेव ने देवचन्द्र सूरि से दीक्षा ली और हेमसूरि नाम से विख्यात हुआ । हेमसूरि ने सिद्धराज को रञ्जित किया। राजशेखर कहता है कि हेमसूरि के विषय में अनेक बातें प्रबन्धचिन्तामणि से ज्ञात होती हैं । अतः वह कतिपय नवीन प्रबन्धों को प्रकाशित करता है । हेमसूरि ने कुमारपाल को अमारि और पशु-वध निषेध का उपदेश दिया । उसने राजा का कुष्ट रोग दूर कर दिया। उसके प्रतिबोध से कुमारपाल ने सपरिवार, मन्त्रियों व हेमसूरि के साथ शत्रुञ्जय, जयन्त आदि की तीर्थयात्रा की, नेमि - वंदना की और प्रभूत दान दिया । चालुक्य चाहमान संघर्ष उस कुमारपाल की बहन ( देवलदेवी ) का विवाह चाहमानवंशीय शाकम्भरी नरेश आनाक ( अर्णोराज ११३०-५० ई० ) से हुआ था । आश्चर्य है कि चौपड़ ( शतरञ्ज ) खेलते समय आनाक और उसकी पत्नी में 'मुण्डिकाओं को मारो' बात पर विवाद हो गया ।' रानी अपने भाई कुमारपाल के पास शिकायत लेकर आयी । कुमारपाल को गुप्त रूप से विदित हुआ कि क्रुद्ध आनाक ने व्याघ्रराज को कुमारपाल के वध के लिए नियुक्त किया था । कुमारपाल ने व्याघ्रराज को मल्लयुद्ध में भूमिसात् कर दिया । दोनों ओर से युद्ध की तैयारियाँ होने लगीं । कुमारपाल ने पाणि सेना का उपाय किया । आनाक ने द्रव्य-बल ( उत्कोच ) से कुमारपाल के नड्डुलीय चाहमान केल्हण आदि सामन्तों में मतभेद उत्पन्न कर अपने पक्ष में कर लिया । आनाक ने उन्हें उदासीन रहने का मन्त्र दिया । मालवा का राजपुत्र चाहड़ स्वयं रुष्ट होकर आनाक के पक्ष में चला गया। किसी तरह कुमारपाल ने अपने हाथी को नियन्त्रित करके आनाक को हौदे सहित भूमि पर गिरा दिया । कुमारपाल ने १. 'मुण्डिका' द्वयार्थक है । एक अर्थ हुआ शतरंज की शारी ( गोट ), दूसरा अर्थ हुआ टोपिका से रहित सिर, जो गुर्जर लोगों से जुड़ा हुआ है । दे० रामाफो, प्रथम भाग, उत्तरार्द्ध, पू० १२६ टि० भी जहाँ मुण्डिका को जैन फकीरों से जोड़ा गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy