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ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन
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जातीय वणिक् थे । चाङ्गदेव ने देवचन्द्र सूरि से दीक्षा ली और हेमसूरि नाम से विख्यात हुआ । हेमसूरि ने सिद्धराज को रञ्जित किया। राजशेखर कहता है कि हेमसूरि के विषय में अनेक बातें प्रबन्धचिन्तामणि से ज्ञात होती हैं । अतः वह कतिपय नवीन प्रबन्धों को प्रकाशित करता है ।
हेमसूरि ने कुमारपाल को अमारि और पशु-वध निषेध का उपदेश दिया । उसने राजा का कुष्ट रोग दूर कर दिया। उसके प्रतिबोध से कुमारपाल ने सपरिवार, मन्त्रियों व हेमसूरि के साथ शत्रुञ्जय, जयन्त आदि की तीर्थयात्रा की, नेमि - वंदना की और प्रभूत दान दिया । चालुक्य चाहमान संघर्ष
उस कुमारपाल की बहन ( देवलदेवी ) का विवाह चाहमानवंशीय शाकम्भरी नरेश आनाक ( अर्णोराज ११३०-५० ई० ) से हुआ था । आश्चर्य है कि चौपड़ ( शतरञ्ज ) खेलते समय आनाक और उसकी पत्नी में 'मुण्डिकाओं को मारो' बात पर विवाद हो गया ।' रानी अपने भाई कुमारपाल के पास शिकायत लेकर आयी । कुमारपाल को गुप्त रूप से विदित हुआ कि क्रुद्ध आनाक ने व्याघ्रराज को कुमारपाल के वध के लिए नियुक्त किया था । कुमारपाल ने व्याघ्रराज को मल्लयुद्ध में भूमिसात् कर दिया ।
दोनों ओर से युद्ध की तैयारियाँ होने लगीं । कुमारपाल ने पाणि सेना का उपाय किया । आनाक ने द्रव्य-बल ( उत्कोच ) से कुमारपाल के नड्डुलीय चाहमान केल्हण आदि सामन्तों में मतभेद उत्पन्न कर अपने पक्ष में कर लिया । आनाक ने उन्हें उदासीन रहने का मन्त्र दिया । मालवा का राजपुत्र चाहड़ स्वयं रुष्ट होकर आनाक के पक्ष में चला गया। किसी तरह कुमारपाल ने अपने हाथी को नियन्त्रित करके आनाक को हौदे सहित भूमि पर गिरा दिया । कुमारपाल ने
१. 'मुण्डिका' द्वयार्थक है । एक अर्थ हुआ शतरंज की शारी ( गोट ), दूसरा अर्थ हुआ टोपिका से रहित सिर, जो गुर्जर लोगों से जुड़ा हुआ है । दे० रामाफो, प्रथम भाग, उत्तरार्द्ध, पू० १२६ टि० भी जहाँ मुण्डिका को जैन फकीरों से जोड़ा गया है ।
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