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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
दोनों की स्मृतिस्वरूप गुरु सिद्धसेन सूरि ने दीक्षा के समय ( ७५० ई० ) में सूरपाल का नाम बप्पभट्टि अपर नाम भद्रकीर्ति रखा । अध्ययनकाल में बप्पभट्टि का राजकुमार आम ( नागभट्ट द्वितीय ) से स्नेह हुआ, जो जीवनभर बना रहा ।
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उस समय गौड़ देश की राजधानी लक्षणावती में राजा धर्म ( पाल ) शासन कर रहा था, जिसकी राजसभा में कविराज वाक्पति भी विद्यमान था । भ्रमण करते हुए बप्पभट्टि वहाँ पहुँचे । धर्म ( पाल ) के प्रस्ताव पर उसकी ओर से बौद्ध दार्शनिक वर्द्धनकुञ्जर और आम राजा की ओर से बप्पभट्टि के बीच शास्त्रार्थं हुआ, जिसमें वर्द्धनकुञ्जर की गुटिका ( लघुपुस्तिका या नोटबुक) गिर जाने से बप्पभट्टि विजयी हुआ और 'वादिकुञ्जरकेसरी' कहलाने लगा |
आम गोपालगिरि ( ग्वालियर ) के कान्यकुब्ज राजा यशोवर्म ( वत्सराज ) और रानी सुयशा का पुत्र था । यशोवर्म ( वत्सराज ) के निधनोपरान्त आम राजा हुआ। इसके बाद ही ७५४ ई० में सिद्धसेन ने बप्पभट्ट को सूरिपद पर प्रतिष्ठित और राजा आम को प्रतिबोधित किया ।
एक अन्य समय लक्षणावती पर आक्रमण हुआ । धर्म ( पाल ) मार गिराया गया और वाक्पति बन्दी बनाया गया । वाकूपति ने कारागार में 'गौड़वध' प्राकृत महाकाव्य रचा ।
उधर जब आम एक नट-बालिका पर आसक्त हो गये तब बप्प - भट्ट ने बोधक - पद्यों द्वारा राजा का मोह भंग किया । बप्पभट्टि ने रैवतक के श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदायों में उत्पन्न मतभेद को दूर किया । जीवन की सन्ध्या में राजा आम ने समुद्रसेन के राजगिरि दुर्ग पर प्रथम आक्रमण किया, पर अपने पुत्र दुन्दुक ( रामभद्र ) के रहते उसे जीत न सका । अपने पौत्र की सहायता से उसे द्वितीय आक्रमण में विजय प्राप्त हुई ।
तदनन्तर गोपगरि आकर आम ने दुन्दुक को राज्य पर प्रतिष्ठित किया । आम ८३३ ई० में स्वर्गवासी हुए । राज्यासीन होते ही दुन्दुक त्रिवर्ग सेवन करने लगा । उसने कण्टिका गणिका को अन्तःपुर की स्त्री बना लिया । अन्ततः भोज़ मातुलिङ्गी विद्या द्वारा कण्टिका और
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