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________________ ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन [५१ कालान्तर में रङ्क वणिक ने ईर्ष्या के वशीभूत हो म्लेच्छ सेना को वलभी बुलाया। प्रबन्धकोश के अनुसार ३७५ वि० सं० में वलभी भङ्ग हुआ जो त्रुटिपूर्ण है। वस्तुतः वलभी भङ्ग ७८८ ई० में हुआ था। __ मल्लवादि के वर्णन प्रभावकचरित, प्रबन्धचिन्तामणि और प्रबन्धकोश में आते हैं। प्रबन्धकोश में प्रबन्धचिन्तामणि के कथन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है । प्रबन्ध-ग्रन्थों के अनुशीलन से स्पष्ट है कि मल्लवादि नाम के तीन आचार्य हुए। पञ्चासर, पाटण और थामणा में मल्लवादि गच्छ की गद्दियाँ थीं। एक जैन-परम्परा के अनुसार प्रथम मल्लवादि विक्रम की चौथी-पाँचवी शताब्दी, द्वितीय मल्लवादि आठवीं और तृतीय मल्लवादि तेरहवीं शताब्दी के आचार्य हैं।' प्रबन्धकोश के मल्लवादि विक्रम की चौथी-पाँचवीं शताब्दी के मल्लवादि नहीं थे, क्योंकि इन्होंने सिद्धसेन (पाँचवी शताब्दी ई०) की 'सम्मतितर्क' पर टीका रची है। ये विक्रम की तेरहवीं शताब्दी के मल्लवादि नहीं थे, क्योंकि 'अनेकान्तजयपताका' (विक्रम की आठवीं शताब्दी) में उनके ग्रन्थ के उद्धरण प्राप्त होते हैं । अतएव प्रबन्धकोश का मल्लवादि द्वितीय मल्लवादि था, जो विक्रम की आठवीं शताब्दी का आचार्य था। विक्रम की आठवीं शताब्दी में कान्यकुब्ज नरेश ने खेटकपुर ( गुजरात की राजधानी खेड़ा ) से गुर्जरवंशीय राजा को निकाल कर अपना राज्य स्थापित किया। उस समय वलभीपुर में सूर्यवंशी ध्रुवपट नामक राजा राज्य करता था। कन्नौज के राजा आम ने रत्नगङ्गा नाम की पुत्री का विवाह ध्रुवपटु के साथ और दूसरी पुत्री का विवाह लाट देश (भृगुकच्छ ) के राजा के साथ किया। कदाचित् यही ध्रुवपटु ( ७वीं शती ई० ) शीलादित्य कहलाया होगा, क्योंकि आदित्य ( सूर्य ) से उसे सूक्ष्म शिला प्राप्त हुई थी, जिसे वह आयुध के रूप में प्रयुक्त करता था। १. दे० जैपइ, पृ० ३७८-३८० । २. रामाफो, प्रथम भाग, पूर्वाद्ध', पृ० ४९ पादटि० । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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