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________________ ५० ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन चन्द्र ने उनको बलपूर्वक पराजित कर अपनी भुजाओं पर खड्ग से कीति अंकित की। अतः यही विक्रमादित्य ही प्रबन्धकोश का देवपाल राजा है, क्योंकि उसकी अनेक उपाधियों के अलावा देवराज, देवगुप्त आदि अनेक नाम भी पाये जाते हैं। सिद्धसेन को ऐसा गौरव प्राप्त था कि श्वेताम्बर तथा दिगम्बर दोनों ही इन्हें अपने-अपने सम्प्रदाय का मानते हैं। इनके रचे ३२ ग्रन्थ कहे जाते हैं, जिनमें से २१ ग्रन्थ आज भी उपलब्ध हैं।' इन ग्रन्थों में पहली बार ब्राह्मण और बौद्ध दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन व जैन दृष्टिकोण से उनकी आलोचना प्राप्त होती है। ७. मल्लबाविसूरि प्रबन्ध ____ शीलादित्य का जन्म वलभी में हुआ था। इनकी माता सुभगा और नाना देवादित्य ब्राह्मण थे, जो खेटा महास्थान ( गुर्जर-मण्डल ) के निवासी थे। उस बालक ने असाधारण शक्ति अजित कर वलभी के राजा को मार डाला और शीलादित्य के नाम से वलभी-नरेश बन बैठा । उसने भृगुक्षेत्र के राजा के साथ अपनी बहन का विवाह किया। इस बहन का पुत्र मल्लवादि कहलाया। एक बार शीलादित्य की सभा में जैनों और बौद्धों के बीच शास्त्रार्थ हुआ। उसमें पराजित जैनों को राजा ने अपने राज्य से निर्वासित कर दिया। जब शीलादित्य के भांजे को अपनी माँ से श्वेताम्बर जैनों की हीन दशा का पता चला, खिन्न बालक ने बौद्धों के उन्मूलन की प्रतिज्ञा की और मल्लपर्वत पर तपस्या शुरू कर दी। वह शासन-देवी से 'नयचक्र' की तर्क-पुस्तक प्राप्तकर वलभी आया और बौद्धों को शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया। अब वह मल्लवादि कहलाने लगा। १. पाण्डेय, राजबली : प्रा० भा०, पृ० २६२-२६३ । २. विशद विवेचना के लिए दे० जैनसो, पृ० १६४-१६५; जैपइ, पृ० २५४ २५६; जोहरापुरकर व कालसीवाल : पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ३४; उपाध्ये, ए० एन० : सिद्धसेन्स 'न्यायावतार' ऐण्ड अदर वर्क्स; उपाध्याय, वासुदेव : गु० सा० का इति०, द्वितीय खण्ड, पृ० १४७-१४८; जैसाबृइ, झगछ, ५६४; ५६५, ५६९-५७१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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