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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
पति के दिवंगत हो जाने पर शीलवती दुःखी थी। उसने दोनों भाइयों को एकमत हो जाने का परामर्श दिया । सुवर्णकीर्ति ने माता के वचन से प्रबुद्ध होकर दीक्षा ग्रहण की और अब उसका नाम जीवदेवसूरि हो गया ।
एक बार जीवदेवसूरि ने एक योगी को सूरिमन्त्र शक्ति से कीलित कर दिया परन्तु बाद में उसे मुक्त कर दिया । उन्होंने श्रेष्ठी लल्ल और ब्राह्मणों को भी प्रभावित किया था । जीवदेव सामुद्रिकशास्त्र में वर्णित महापुरुषों के बत्तीस लक्षणों से युक्त थे । वे 'भक्तामर स्तोत्र' का पाठ करते थे ।
जीवदेवसूरि प्रबन्ध भी प्रभावकचरित में वर्णित प्रबन्ध का गद्यीकरण है । इसमें प्रभावकचरित द्वारा प्रदत्त सूचनाओं से कुछ भी अधिक नहीं है। जीवदेवसूरि प्रबन्ध में चमत्कारिक वर्णन कई हैं, जिनमें ऐतिहासिकता ढूँढ़ना व्यर्थ है । फिर भी इस प्रबन्ध का तीन दृष्टियों से ऐतिहासिक महत्व है
१. जैनों के 'सूरि' और 'आचार्य' पदों के वर्णन हैं ।
२. श्वेताम्बर बनाम दिगम्बर - एक भाई श्वेताम्बर और दूसरा भाई दिगम्बर था ।
३. श्वेताम्बर की प्रधानता और प्रभावना हुई ।
४. आर्यखपटाचार्य प्रबन्ध
भृगुकच्छ में राजा बलमित्र के राज्य में बौद्ध तर्कज्ञों का बड़ा प्रभाव था उनको खपुट के शिष्य भुवन ने पराजित किया । बौद्धों की मदद के लिए गुडशस्त्रपुर से आये हुए वृद्धकर नामक वादी की भी पराजय हुई | अपमान से क्षुब्ध होकर उसने अनशन से देह त्याग किया । वह यक्ष होकर पूर्वजन्म के वैर से गुडशस्त्रपुर में जैनों को कष्ट देने लगा। संघ की प्रार्थना पर खपुट वहाँ गये और शान्ति स्थापित की । वहाँ के राजा ने खपुट को महान सिद्ध समझकर क्षमा माँगी और उनका सम्मान किया ।
उस समय पाटलिपुत्र में दाहड़ नामक राजा ने जैन मुनियों को १. दाहड़ राजा ब्राह्मण भक्त था ( प्रको, पृ० ११ ) । वह निकुष्ट राजा था ( प्रभाव, पृ० ३४ ) । .
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