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________________ ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन । ४१ ने उसे आर्य मंगुका शिष्य । आर्यनन्दिल वाचक वंश के समर्थ वाचनाचार्य, दर्शन, ज्ञान, व्याकरण, गणित और कर्मप्रकृति के प्रकाण्ड विद्वान् थे। आर्यनन्दिल सरीखे जैन आचार्यों ने ८ नागकुलों को जैन बनाया था। पुराणों के अनुसार नागवंश ने विदिशा, कान्तिपुरी, मथुरा और पद्मावती में राज्य किया। विदिशा के नागवंशी तेरह राजाओं ने लगभग २०० वर्षों ( ई० पू० १००-७८ ई० ) तक राज्य किया। इस दष्टि से भी आर्यनन्दिल का समय प्रथम शताब्दी ई० पू० से प्रथम शताब्दी ई० के तृतीयांश के बीच ही समीचीन ठहरता है। ___ आर्यनन्दिल प्रबन्ध में वणित अधिकांश तथ्य प्रभावकचरित से ग्रहण किये गये हैं और इसमें ऐतिहासिक तथ्य कम हैं। प्रत्यक्ष रूप से आर्यनन्दिल की गुरु-शिष्य परम्परा तथा उनके द्वारा जैनधर्म के प्रसार के अतिरिक्त अन्य कोई महत्व की बात प्रत्यक्ष रूप से नहीं प्राप्त होती। परोक्ष रूप से यह प्रबन्ध तीन मुख्य बातों पर प्रकाश डालता १. नागवंश की उत्पत्ति, २. सामाजिक विघटन - श्वशुर बनाम वधू ( वधू का वैर-भाव ) ३. पुत्रोत्पत्ति के उपाय - क्षीर ( पायस )। ३. जीवदेवसूरि प्रबन्ध गुर्जरभूमि के वायट नगर में जीवदेव का जन्म हुआ था। वहाँ श्रेष्ठी धर्मदेव व श्रेष्ठिनी शीलवती के महीधर और महीपाल दो पुत्र थे। महीधर राशिल्य नामक श्वेताम्बर सूरि और महीपाल सुवर्णकीति नामक दिगम्बर आचार्य हो गये। गुरु श्रुतकीर्ति ने सुवर्णकीर्ति को चक्रेश्वरी' और परकाया नामक दो विद्याएँ व आचार्य पद दिया। १. प्रको, पृ० १,५; प्रभाच, पृ० २, ९-१४, १७-१९, २७; वितीक पृ० ७०; खरतर, पृ० ५६; खरतरपट्ट २,१९; जैपइ, पृ० १८३-१८५; जैसाइ, पृ० १२ । २. रहस्यमत गीत का नाम । ऋपभदेव को शासन देवी का नाम । यह चक्रेश्वरी-गीत जैन-तन्त्र की सोलह विद्याओं में से एक है। दे० शाह, यू० पी० : आइकोनोग्राफी ऑफ सिक्सटीन जैन महाविद्याज, जइसो ओ ए, पन्द्रहवाँ सं०, पृ० ११४ व आगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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