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________________ ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन [३९ भद्रबाहु का और ब्राह्मणवादी ज्योतिष पर जैन ज्योतिष का वर्चस्व स्थापित हो। निश्चय ही सिंह लग्न की कुण्डली बनाना, उस पर सिंह का बैठना, सूर्य प्रत्यक्ष होना आदि एक सुन्दर गप्प है। किन्तु प्रबन्ध का सूक्ष्म अध्ययन करने से विदित होता है कि भद्रवाहु नाम के तीन विद्वान् हुए हैं-एक श्रुतकेवली भद्रबाहु ( ३५७३१७ ई० पू० ); दूसरे निमित्तवेत्ता भद्रबाहु ( १४०-१०० ई० पू०)', और तीसरे नियुक्तियों ( ५२५-५५० ई० ).के रचयिता भद्रबाहु । तीसरा भद्रबाहु ही ज्योतिषी वराहमिहिर का भाई था जिसकी ‘पञ्चसिद्धान्तिका' की तिथि ५५० ई० है। चूंकि नियुक्तियों में प्रथम, द्वितीय और तृतीय शताब्दियों तक के व्यक्तियों और घटनाओं के उल्लेख आते हैं और चूंकि सूत्रों का सम्यक् संस्करण पाँचवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में पूर्ण हुआ था इसलिए इस भद्रबाहु तृतीय को तथा उसकी नियुक्तियों को ५२५-५५० ई० का समय प्रदान किया जा सकता है। अतः प्रबन्धकोश में वर्णित भद्रबाहु का समीकरण इसी भद्रबाहु तृतीय से किया जाना चाहिये जो विक्रम संवत् की पाँचवीं-छठी शताब्दियों में था और वराहमिहिर पाँचवीं शताब्दी ई० के अन्त में । प्रबन्धचिन्तामणि सरीखे कुछ जैन-ग्रन्थ भद्रबाहु को छोटा भाई मानते हैं। किन्तु प्रबन्धकोश में भद्रबाहु ने वराहमिहिर के लिए 'वत्स' सम्बोधन का प्रयोग किया है, जिससे प्रतीत है कि भद्रबाहु वराह से १. ओझा, गौरीशकर हीराचन्द ( सम्पा.): ना० प्र० पत्रिका, भाग ५ सं० १९८१, पृ० ३७१ टि । याकोबी, एच० : द कल्पसूत्राज ऑफ भद्रबाहु, भूमिका, पृ० १३-१४ । २. जैन स्थविरावली। दे० बाली, चन्द्रकान्त : नए चन्द्रगुप्त की खोज, ना० प्र० पत्रिका, सं० २०३९, पृ० ९६; श्रवणबेल्गोल में पाये गये अनेक अभिलेख श्रुतकेवली भद्रबाहु के दक्षिण गमन की पुष्टि करते हैं। दे. नरसिंहाचार, आर० : इन्स्क्रिप्शंस ऑफ श्रवणबेल्गोल, इपि. कर्नाटक, जिल्द दूसरी, बंगलोर, १९२३; अनेकान्त, नवाँ, ग्यारह, पृ० ४४३-४४४; पुरातन जैन वाक्य सूची, पृ० १४६ । ३. जैनसो, पृ० १६४ तथा पृ० १६५ । ४, दे० प्रचि, पृ० ११८; प्रचिद्धि, पृ० १४६; खरतरपट्ट, पृ० १६; जैपइ, पृ० १२१; बाली, चन्द्रकान्त : पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ९७; दे० प्रको, पृ० २ भी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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