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________________ ३८ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन १. भद्रबाहु-वराह प्रबन्ध प्रतिष्ठानपुर निवासी भद्रबाहु और वराह नामक दो भाइयों ने यशोभद्र का उपदेश सुना। भद्रबाहु नियुक्ति सहित दस ग्रन्थों और भाद्रबाहवीं संहिता का रचयिता हुआ। जब वराह भी विद्वान् हुआ तब उसने अपने भाई भद्रबाहु से सूरिपद माँगा। भद्रबाहु ने उसे घमण्डी बताते हुए नहीं दिया। फलतः वराह ने विप्र-वेश धारण किया। उसने वाराह-संहितादि नवीन शास्त्रों की रचना की। वराह बाल्यकाल से ही लग्न ( मुहूर्त ) का विचार करने, सम्पूर्ण ज्योतिषचक्र (नक्षत्र-मण्डल ) देखने तथा सूर्य से वरदान प्राप्त करने के कारण 'वराहमिहिर' कहलाने लगा। तदनन्तर प्रतिष्ठानपुर के राजा शत्रुजित ने वराहमिहिर को अपना पुरोहित बना लिया। परन्तु पुत्र-निधन के कारण वराह का ज्योतिष पर से विश्वास उठने लगा और वह जैनधर्मद्वेषी दुष्ट व्यन्तर हो गया। ___ओझा और याकोबी का कथन है कि भद्रबाहु और वराह न तो दोनों भाई थे और न समकालीन । सारा 'भद्रबाहु-वराह प्रबन्ध' कपोल-कल्पित प्रतीत होता है। इस प्रकार की कथाओं का आविष्कार इसलिये किया गया है कि सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मणवादी वराहमिहिर पर १. प्रको, पृ० २-४ । प्रबन्ध के संक्षिप्त सार के लिए दे० शर्मा, शिवदत्त : चतुर्विंशतिप्रबन्ध, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भाग ५, १९८१, पृ० ३७०.३७२; भद्रबाहु के लिए दे. मुनि चतुरविजय का लेख आत्मानन्द जन्म शताब्दी स्मारक ग्रन्थ में। २. हैदराबाद के औरंगाबाद जिले में गोदावरी तट पर अवस्थित आधु निक पैठन । सरकार, डी० सी० : स्टडीज इन द ज्योग्रफी ऑफ ऐन्शियेण्ट ऐण्ड मिडिवल इण्डिया, दिल्ली, १९६०, पृ० १५४ । ३. दशवकालिक, उत्तराध्ययन, दशाश्रुतस्कन्ध, कल्पव्यवहार, आवश्यक, सूर्य प्रज्ञाति, सूत्रकृत, आचाराङ्ग तथा ऋषि भाषिताख्य । प्रको, पृ० २; दे० खरतरपट्ट, पृ० १७; जैपइ, पृ० ४३६; जैपइ (पृ० १२२-१२३ ) के अनुसार भद्रबाहु ने २१ ग्रन्थों की रचना की, जिनमें से 'व्यवहारसूत्र' तथा 'संसक्त नियुक्ति' अप्राप्य हैं। दे० शर्मा, शिवदत्त : चतुर्विंशतिप्रबन्ध, पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ३७० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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