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अध्याय
ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन
ग्रन्थ-परिचय के बाद ग्रन्थागत ऐतिहासिक तथ्यों का वर्णन एवं उनका मूल्यांकन आवश्यक हो जाता है । ऐतिहासिक तथ्य एक प्रतीक है जो वर्तमान में इतिहासकार के मस्तिष्क में रहता है, परन्तु किसी भी तथ्य को सही रूप में समझने के लिए ऐतिहासिक दृष्टि अत्यन्त आवश्यक है । इसलिए विकास की प्रक्रिया का अध्ययन तथ्यों को स्पष्ट कर देता है क्योंकि इतिहासकार और तथ्य में उतना ही सम्बन्ध है जितना मनुष्य और वातावरण में ।
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किन्तु अतीत के सभी तथ्य ऐतिहासिक तथ्य नहीं होते हैं । इतिहासकार जिन तथ्यों को स्वीकारता है उन्हें ही ऐतिहासिक तथ्य माना जाता है ।' हेरोडोटस ( ४८५-४२५ ई० पू० ), हेमचन्द्र ( १०८८ - ११७३ ई० ), प्रभाचन्द्र १२७७ ई० ) तथा कार्लाइल ( १७९५१८८१ ई० ) महापुरुषों के इतिहास पर बल देते हैं । ऐसे महापुरुषों . के कई वर्ग किये जा सकते हैं, यथा-अवतारी महापुरुष, देवदूत, कवि, धर्मशास्त्री, साहित्यकार, राजा आदि । इसी परम्परा में प्रबन्धकोश में जो ऐतिहासिक तथ्य स्वीकार किये गए हैं वे प्रभावशाली आचार्यों, सुप्रसिद्ध कवियों, राजाओं तथा सामान्य गृहस्थों से सम्बन्धित हैं । ऐसे तथ्य प्रदान करने में ग्रन्थान्त में दी गयी ग्रन्थकार प्रशस्ति व राजवंशावली भी कम उपयोगी नहीं है । इसलिये ग्रन्थागत सभी प्रबन्धों के सार एवं उनके मूल्यांकन का क्रमानुसार वर्णन किया
जायगा ।
१. कार, ई० एच० : इतिहास क्या है, मैकमिलन, नई दिल्ली, १९७९, पृ० ४, २० । तथ्य तभी बोलते हैं जब इतिहासकार उन्हें बुलवाता है । कार, पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ४ ।
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