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________________ ३६ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन अन्यथा शेष सभी प्रधानतया गद्य में हैं। "इस समय की जैन संस्कृत में एक मनोहारिता यह है कि जैन-लेखक गुजराती या देशभाषा में सोचते थे और लिखते थे संस्कृत में। राजशेखर ने प्रबन्धकोश में यावनी भाषा के शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है। यावनी भाषा के ये शब्द प्रबन्धकोश ग्रन्थ के प्रायः उत्तरार्द्ध में तथा विषय के अनुसार प्रयुक्त किये गए हैं। इनमें कुछ शब्दों को छोड़कर अधिकांश व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ हैं। अपने वर्णन को कहीं-कहीं अत्यधिक रोचक बनाने के लिए वह काव्यात्मक शैली भी प्रयुक्त करता है । जैसे-"( राजा गोविन्दचन्द्र ) ७५० अन्तःपुरवासियों के यौवन-रस को ग्रहण करने वाला था।"२ इस तरह ऐतिहासिक तथ्यों की अवहेलना न करते हुए प्रबन्धकार हमें सूचित कर देता है कि राजा गोविन्दचन्द्र के ७५० रानियाँ थीं। अतः जिन राजनीतिक व साहित्यिक पृष्ठभूमियों में प्रबन्धकोश की रचना हुई वे ग्रन्थ-रचना, उसके उद्देश्यों एवं भाषा-शैली के औचित्य को सिद्ध करते १. गुलेरी, चन्द्रधर शर्मा : पुरानी हिन्दी, ना० प्र० सभा, काशी, तृतीय सं०, १९७५, पृ० १९ । २. प्रको, पृ० ५४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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