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________________ प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन चाहिए।' न हम आपके हैं, न आप हमारे। सांसारिक सम्बन्ध कृत्रिम हैं।" जयताक से राजशेखर कहलवाता है कि भूखा कौन-सा पाप नहीं करता है ? वकचूल ने प्रधान पुरुषों को आमन्त्रित कर अपने उपदेशों से अवगत कराया था कि जीवों का वध तथा पल्ली में मांस-मदिरादि का सेवन तुम लोगों को नहीं करना चाहिए। सूरियों ने वकचूल को चार उपदेश दिये थे। ___जैसा कि कहा जा चुका है कि राजशेखर का उद्देश्य अतीत को वर्तमान की आवश्यकतानुसार उपस्थित करना था। चूंकि राजशेखरकालीन भारतीय समाज में गैर मुसलमानों की स्थिति अत्यन्त निम्न थी, इसलिए तत्कालीन भारत को नीति उपदेशों की आवश्यकता हुई। यही कारण है कि राजशेखर ने समाज की आवश्यकता को देखते हुए २४ में से १० प्रबन्ध ऐसे लिखे हैं जो कि सूरियों से सम्बन्धित हैं। अतः उसका उद्देश्य पाठकों को नैतिक शिक्षाएँ प्रदान करना भी था। ऐसा प्रतीत होता है कि राजशेखरसूरि अपने ग्रन्थ के माध्यम से लोगों को प्राचीन तथ्यों तथा इतिहास से परिचित कराना चाहता था जिससे कि पुरानी गलतियाँ पुनः न दुहराई जाँय तथा समाज में प्रगतिशील परिवर्तन हो। अतः उसने प्रबन्धकोश की ख्याति का प्रयास किया। स्व ख्याति वह नहीं चाहता था और उसने स्वयं अपने विषय में ग्रन्थकार प्रशस्ति के अतिरिक्त तनिक भी बतलाने का कोई प्रयास नहीं किया क्योंकि अनामता भारतीय कला और संस्कृति की विशेषता है। आश्चर्य तो यह है कि उसके समकालीन भारतीय या मुस्लिम लेखकों ने भी उसके सम्बन्ध में कुछ नहीं लिखा। कुन्दकुन्द की परम्परा में सहस्रकीति का शिष्य श्रीचन्द्र था, जिसने अपने ग्रन्थ १. 'राजभिः पूज्यते यश्च सर्वेरपि स पूज्यते।' प्रको, पृ० ३ । तुलना कीजिए - 'स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।' 'पापं पच्यते हि सद्यः ।' वही, पृ. ९८ । 'आबालवद्धान लालयेत् ।' वही, पृ० ४४ । २. 'बुभुक्षितः किं न करोति पापम् ।' वही, पृ० ५३ । ३. 'भवाद्भजीववधो मांसमद्यादिप्रसङ्गश्च पल्लया मध्ये न कर्तव्यः।' वही, पृ० ७५। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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