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३२ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन करना ग्रन्थ-रचना के प्रयोजन बतलाए गए हैं। मुस्लिम इतिहासकारों का उद्देश्य उपयोगितावादी था जिसमें ऐतिहासिक उदाहरणों द्वारा धर्म की शिक्षा देना, महान् कार्यों को लिपिबद्ध करना, इस्लाम का यशोगान करना, विशिष्ट सुल्तान की प्रशंसा करना या ये सब करना उद्देश्य बनाये गये थे। इसके विपरीत तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दियों में जैनों ने इतिहास में रिक्त स्थानों की पूर्ति के लिए भूतकाल की कथाओं का संग्रह करना शुरू किया। वे ग्रन्थ-रचना के उद्देश्य को प्रत्येक अध्याय या ग्रन्थ के अन्त में एक या दो पद्यों में ग्रथित कर देते थे।
प्रबन्धकोश की रचना में राजशेखर का प्रथम उद्देश्य अतीत का सही चित्र-लेखन था। ट्रेवर-रोपर का कहना है कि इतिहासकार को 'अतीत से प्रेम करना चाहिये' ।' राजशेखर का उद्देश्य अतीत को वर्तमान की आवश्यकतानुसार उपस्थित करना था। इस उद्देश्य की प्राप्ति, ऐतिहासिक सत्य के निरूपण से ही सम्भव थी। इस प्रकार सही स्थानों, घटनाओं एवं समयों को निर्धारित करके राजशेखर ऐतिहासिक सत्य को प्रतिष्ठापित करना चाहता था। उसने सत्य पर परदा डालने का प्रयास नहीं किया है । तथ्यों की सटीकता राजशेखर का गुण नहीं अपितु कर्तव्य है। एक स्थल पर तो वह अपना उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट कर देता है कि उसने जैन-विरोधी परम्पराओं के होते हुए भी सही और सुसम्प्रदाय द्वारा कही गयी परम्परा को लिपिबद्ध किया है।
ये तथ्य इतिहासकार के लिये उपयोगी और महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि बिना किसी सन्दर्भ के तथ्यों की भरमार का कोई प्रयोजन नहीं होता है और वे इतिहास कहला भी नहीं सकते । राजशेखर ने
१. बर्खार्ट : जजमेण्ट्स ऑन हिस्टरी ऐण्ड हिस्टोरिएन्स, १९५४, पृ० १७ । २. 'महाजनाचारपरम्परेदशी', प्रको प० २७ ।
'इति चिरत्नगाथाविरोधप्रसङ्गात्', वही, पृ० ७६ ।
'इयं च कथा जैनानां न सम्मताः', वही, पृ० ८८ । ३. डार्सी, ए० सी० : द मीनिङ्ग ऐण्ड मैटर ऑफ हिस्टरी, न्यूयार्क, १९६१,
पृ० १६ ।
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