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________________ ३० ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन ग्रन्थ का चौथा शीर्षक 'प्रबन्धामृतदीर्घिका' है । इसका आशय है 'प्रबन्धरूपी अमृत का कुण्ड' । प्रथम शीर्षक 'प्रबन्धकोश', ग्रन्थान्त में दो बार और द्वितीय शीर्षक 'चतुर्विंशतिप्रबन्ध' भी ग्रन्थारम्भ और ग्रन्थान्त में दो बार प्रयुक्त किये गए हैं। अतः इन शीर्षकों की आन्तरिक महत्ता यह है कि कोश होने के नाते यह ग्रन्थ अध्येता या पाठक को वांछित प्रबन्ध प्रदान कर सकता है और इनकी बाह्य महत्ता यह है कि यह ग्रन्थ अन्य ग्रन्थकारों को प्रबन्धरूपी अमृत प्रदान करता है। ३. संस्करण __ पाश्चात्य विद्वानों में सबसे पहले इस 'प्रबन्धकोश' नामक ग्रन्थ का परिचय ए० के० फोब्स को १८५६ ई० के पूर्व हुआ। अब तक इसके तीन संस्करण क्रमशः पाटन, जामनगर और शान्ति-निकेतन से निकाले जा चुके हैं। इसका प्रथम प्रकाशन १९२१ ई० में हेमचन्द्र सभा, पाटन द्वारा हुआ। पाण्डुलिपि के आकार में छपा यह मात्र १३८ पृष्ठों का प्रकाशन था। कालान्तर में वीरचन्द्र और प्रभुदास ने इसको व्याकरण की दृष्टि से संशोधित करके हीरालाल हंसराज, जामनगर से १९३१ में पुनर्प्रकाशित किया। १९३५ ई० में मुनि जिनविजय ने राजशेखरकृत प्रबन्धकोश का आलोचनात्मक सम्पादन किया और शान्तिनिकेतन से सिंघी जैन ज्ञानपीठ के ग्रन्थांक ६ के रूप में एक प्रामाणिक संस्करण प्रकाशित किया, जो भिन्न-भिन्न पाठभेद सहित विशेषनामानुक्रम समन्वित मूलग्रन्थ है । प्रस्तुत शोध-ग्रन्थ में इसी संस्करण का प्रयोग किया गया है। पाठभेद संग्रह करने में जो शब्द व्याकरण या भाषा की दृष्टि से शुद्ध प्रतीत हुए उन्हें जिनविजय ने मूल में लिखा और अन्य प्रतियों के शब्दों को पाद-टिप्पणियों में वैज्ञानिक रीति से संग्रह किया, जिससे मूल का अध्ययन करने में सहायता मिलती है। इस आलोचनात्मक संस्करण में ग्रन्थ का पाठ-संशोधन करने में जिनविजय ने उन छ: अच्छी प्राचीन पाण्डुलिपियों ( प्रतियों ) की सहायता ली है जो १. जिरको, पृ० ११६ व २६५ । । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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