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ग्रन्थ-परिचय
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(१) प्रबन्धकोश, (२) चतुर्विंशतिप्रबन्ध, (३) प्रबन्धचतुर्विंशति और (४) प्रबन्धामृतदीर्घिका ।
इनमें से प्रथम दो शीर्षक–'प्रबन्धकोश' और 'चतुर्विंशतिप्रबन्ध' प्रायः समान रूप से प्रसिद्ध हैं। पहले शीर्षक में प्रबन्ध और कोश शब्द प्रयुक्त हुए हैं। जो ग्रन्थ प्रबन्धों का खजाना हो वही प्रबन्धकोश पुकारा जाना चाहिए। विण्टरनित्ज ने 'प्रबन्धकोश' शीर्षक का अंग्रेजी में 'ट्रेजरी ऑफ स्टोरीज' अर्थात् कथाओं का खजाना अनुवाद किया है। जो उचित नहीं है । 'प्रबन्धकोश' शीर्षक यह इंगित करता है कि इसमें के कुछ प्रबन्ध प्रधानतया पूर्ववर्ती प्रबन्धों पर आधारित हैं, अथवा उनके कुछ अंश शब्दशः नकल कर लिये गए हैं, या गद्य रूप में परिणित कर दिये गए हैं अथवा संस्कृत में अनुदित हैं। इस प्रकार कुल चौबीस प्रबन्धों में से उन चार को छोड़कर, जिन्हें राजशेखर का मौलिक योगदान कहा जा सकता है, शेष संकलन हैं या एकत्रीकरण, यद्यपि उनमें कतिपय परिवर्तन और संशोधन किये गए हैं।
दूसरा शीर्षक 'चतुर्विंशतिप्रबन्ध' भी सार्थक है क्योंकि इसे इसके प्रबन्धों की संख्या के आधार पर ऐसा पुकारा जाता है जो कुल चौबीस हैं। राजशेखर के अनुसार दस जैन आचार्यों, चार कवियों, सात राजाओं और तीन सामान्यजनों के प्रबन्ध हैं, और उन्हें प्रबन्धकार ने क्रमानुसार संख्या प्रदान की है। एक जैन के लिए चौबीस की संख्या अति पवित्र मानी जाती है क्योंकि तीर्थङ्करों की संख्या भी 'चतुर्विशति' है। इन कारणों से प्रेरित होकर राजशेखर ने अपने ग्रन्थ का शीर्षक 'चतुर्विंशति प्रबन्ध' रखा होगा। इसे 'प्रबन्धचतुर्विंशति' भी पुकारा जाता है । १. विष्टरनित्ज : हिइलि भाग २, पृ० ५२० । २. "तत्र सूरिप्रबन्धादश कविप्रबन्धाश्चत्वारः राजप्रबन्धाः सप्त, राजाबश्रावक प्रबन्धास्त्रयः एवं चतुर्विशति ।"
प्रको पृ० ९-१०।
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